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________________ (९) कलमके धनी डाक्टर साहबने अपना सारा जीवन साहित्य साधनामें लगाया। रुग्णावस्थामें नित्य ९-९, १०-१० घण्टे स्वाध्यायमें लगाये। अपने शरीर और स्वास्थ्यकी तनिक भी चिंता न करते हुए निस्वार्थ सेवा करनेवाले बाबूजीमें गजबकी शक्ति और उत्साह था। अंतिम समय तक साहित्यकी सेवामें जुटे रहे। दो मार्च १९६४ को पारनाथ तीर्थ सपरिवार गये । यह तीर्थ बिहार प्रान्त के हजारीबाग जिले में है। वहीं से ही उन्हें एक नवीन प्राथ लिखने की प्रेरणा मिली जिसका शीर्षक--- __"शिखरजी महात्म'' रखनेवाले थे, उस अभूतपूर्व ग्रन्धको रचनाके लिये अन्तिम समय तक ८-९ घन्टे रोज अध्ययन करते रहै, पर विधाताको यह मंजूर ही नहीं था कि यह ग्रन्थ पूरा हो, सकी थोड़ीसी पंक्तियां लिख पाई थीं जिसे देख कर ही उनकी साहित्य सेवाकी तीव्र उत्कंठाका परिचय मिल जाता है । जितना वे लिख सकते थे उतना लिखा, और खूब लिखा । लगभग १०० प्रन्थोंका हिन्दी अंग्रेजी में लिखना हर साहित्यकार के इसकी बात नहीं थी। उनका सारा जीवन पुस्तकों के बीच में ही व्यतीत हुआ। इस प्रकार नित्य आने वाले सैकडों पत्रोंके उत्तर भी स्वयं लिखते थे। कार्यालयमें कुर्क इत्यादि होते हुये भी आधेसे अधिक कार्य वे स्वयं निबटा लेते थे। सन् १९२२ में बाबूजीकी पहली अनुदित पुस्तक 'असहमत संग्रम ' जो बैरिस्टर स्व० श्री चम्पतरायजीकी विश्रुत कृति Confluence of opposites का अनुवाद थी, प्रकाशित हुई और सन् १९२४ में " भगवान महावीर " नामक मौलिक पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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