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(८) बाबूजीने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और सिन्धीका प्रायवेट शिक्षकोंसे ज्ञान प्राप्त किया। साहित्य, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रमें बिना कई भाषाओंका ज्ञान प्राप्त किये कार्य नहीं चलता इसरिये उन्होंने धीरे धीरे कई भाषाएं सीखीं। उनकी प्रतिभासे प्रभावित होकर श्री अनूपचंद न्यायतीर्थने कहा थातुम संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश,
हिन्दी अंग्रेजी जानकार । थे स्वाभिमान गौरव संयुक्त,
तिभाशाली साहित्यकार ।। तुम सफल प्रबक्ता सत्य रूप,
प्रबचन सबहीको मन भाता । सत्कार्य तुम्हारे देख देख,
श्रद्धासे शीश झुका जाता ।।
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