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________________ ( १५ ) स्व० - प्रवतसी सुनी बात जब । का - बिराट रूप के आय महत पुरुष था जो जैनोंका । ता - हि उठाने आया है ॥ प्रपंचोंसे सदा दूर जो । सादा जीवन था जिसका ॥ द-या भावका भरा समंदर । जी - ब दया प्रण था जिसका || अ-ब वह कोसों दूर हुबा हमसे । मर कर भी नाम अमर पाया || रटा " णमो अर्ह " अन्तमें । हो- सुखी सदा उनकी कला || सवाईमाधोपुर बाढीप्रसाद जैन 'नवीन' * आज धरती और नभमें छा गया कोहरा धना है । आज रोता है हिमालय, भूक जड़ चेतन बना है ।। लुप्त प्रायः हो गई गम्भीर, सरिताकी खानी । आज कि 'प्रसाद' के चहुं ओर, तम है वेदना है || " बिदिशा ' लक्ष्मीचन्द्र जैन ' रसिक ' ⭑ याद आवे आपकी पंचशील के आराधक हो शाश्वत जीवन बिश्वासी । हम कभी न भूलेंगे तुमको संस्थापक मिशन सुगुण राखी ॥ जीवन में जो जो कार्य किये, क्या कभी भुलाये जा सकते । साहित्य और जन सेवाके, क्या कार्य गिनाये जा सकते || नि किन कार्योंका कथन करूं, कब परिचय पूरा हो पाता । Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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