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युग युग तक नाम अमर होवे, यहां है मेरे मनको माता ॥
लश्कर
मिश्रीलाइ पाटनी ।
७ )
★ कविका नमस्कार
तुम जैन धर्म चमकाने को,
आगरा
आगमका पाठ पढ़ाते थे ।
तुम ग्रन्थकार सम्पादक थे,
लेखक बन सबको माते थे । तुम नाटकलार निराले थे,
सबको ही मुग्ध बनाते थे । तुम चले गये हो बाबूजी,
धर्मात्माको फैड़ाते थे || तुमने जगका उपकार किया,
तुमको अति भाया करते थे,
कर "अहिंसा - वाणी" का प्रचार |
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तुम अन्तरा में चले गये.
विद्वान प्रचारकके बिचार ||
चलना होगा इन मार्गों पर,
तुमको है कविका नमस्कार ।
जितना तुम करते थे प्रसार ।
राजाबाबू जैन "राज"
* बच्चे भी रो पड़े
बाबूजी मेरे जैसे छोटे बच्चे को नवीन मार्गदर्शन देनेके पूर्व बिना साक्षातकार किये ही इस भौतिक शरीरको छोडकर चले गये ।... पूज्य बाबूजीकी पूर्ण कृत्तियोंसे तो मैं अजान हूं किन्तु मुझ जैसे छोटे बच्चेको वास्तविकताकी ओर छानेके लिये
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