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________________ ( १५५ ) गहन विषाद है, आज कि, वह ज्योतिमय आभा छिप गई। जो कलतक मार्ग दिखाती थी, ज्योति थी प्रज्वलित दीपकी ।। वह जीवन धनका पारखी, सद्गुण रत्न एकत्रित कर । जीवन गंगा बहा सरस बना, चला गय! दूर-बहुत दूर ।। वीर, अहिंसावाणी, बाइस ऑफ अहिंसाका सम्पादन कर । 'अखिल विश्व जैन मिशन' की अक्षुण ज्योति जला ॥ केशरिया ध्वज को और ऊंचा फहराकर । ऐसी दुन्दभी बजाई कि विश्वका हर प्राणी ॥ क्या भारतीय अंग्रेज अमेरिकन, नमैन और जापानी । झूम उठे-जैनोंदेश्य समझकर ।। बहुतोंने त्याग दिया मांस भक्षण और रात्रि भोजन । विश्व की प्रमुख भाषाओं में ।। हर देश जातिकी गाथाओं में । उन्होंने वीर का वह अमर संदेश भेजा कि ।। विश्वमें शांति, अहिंसा बिग्वे पनप उठे। विनाशकारी शक्तियों के मार्ग मुड़े ।। पंचशीटके सुरभित सुमन खिले ॥ वह कर्मठ, वीर, साहस श्रम को गले लगा। जीवनके हर क्षणको पसीनासे नहला । गहरी मीठी नींदमें खो गया ।। घनमें शशि मुदित हुआ। अजर अमर हो गया ।। सुधीर जैन विश्व तुम्हारी सेवाओं को, सदा रखेगा याद । साहित्य उपवन उजड़ा, तुम बिन कामताप्रसाद ।। रामपुर कल्याणकुमार 'शशि' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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