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( १४९) उन्होंने अपने जयपुर प्रवास के दो दिन मेरे यहां ठहरनेकी कृपा की थी जिसकी स्मृति आज भी ताजी बनी हुई है। उस समय जो खुलकर बातचीत हुई थी उससे मैंने जाना कि वे महिला प्रधान संस्कृतिको जनजन तक पहुंचाने के कितने नागयित हैं और प्रयत्नशील भी। यह उनकी प्रतिभा और अध्यवसाय ही था कि अलीगंज जैसे रेल मार्गसे दूर नगरमें रहकर भी उन्होंने विश्चके कोने कोने में अहिंसा और जैन सिद्धान्तोंका प्रचार किया और यही कारण है कि आज विश्वके विद्वानोंके लिये जैन धर्म अपरिचित शब्द नहीं रहा। संक्षेपमें वे व्यक्ति नहीं अपने आपमें एक संस्था थे। एक व्यक्ति क्या कर सकता है बाबू कामताप्रसादजीका जीवन उसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है।
गुमानमल जैन सहसम्पादक "ज्वाला" साप्ताहिक जयपुर
" उनके परलोक गमनसे जैन समाजका एक अमूल्य रत्नका वियोग होगया। अखिल विश्व जैन मिशन के तो वे प्राण ही थे।"
रतनलाल जैन बिजनौर
"बाबूजीकी सौम्यमूर्ति, सरल व्यवहार, धर्म प्रेम, साहित्य सेवा कैसे भूल सकते हैं। ...हमें प्रति क्षण याद आती रहती हैं।...हा। जैन जगतका सूर्य अस्त होगया...षाबूजी मिशनके साथ ही अमर रहेंगे"
मार्तण्ड संयोजक-ऋषमदेव
" आपका निधन जैन समाजके सूर्यका अस्त है और वह भी इस प्रकारका अस्त जिसका अगले प्रातःमें उगनेका प्रश्न ही नहीं है। ...उनके लिये समस्त संचार ही उनका कुटम्ब
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