________________
( १३९) आजके इस युगमें धर्मनिष्ठ, सेवाभावी, नि:स्वार्थी, सज्जनोंकी समाजको अत्यावश्यकता है। समाजमें धामिक वातावरण एवं साहित्य जागृतिकी जो नवचेतना फैलायी उसका श्रेय-श्रद्धेय बाबूजीको ही है। इन्दौर,
नन्दलाल टोंग्या।
"समाजकी एक अमूल्य निधि सदाके लिये विलीन हो गई। जिसने जैन समाजका ही नहीं अपितु देश-विदेशोंमें भारतवर्षका मस्तक गौरवान्वित किया, जिसकी प्रेरणासे सहस्रों सेवाभावी कर्मठ कार्यकर्ता समाजमें तैयार हुये। समाजके इस महान निःस्वार्थ सेवाभावी लेखकके साहित्यिकका आम वियोग हो गया।" वजबज
हीराचन्द बोहरा
क्या जो प्रचार और सेवा वह कर रहे थे और कोई कर सकेगा असम्भवसा प्रतीत होता है। बाहरे भगवान जो तेरी बाणीका प्रचार तन मन धनसे कर रहा हो उसीको तुर्त उठा डिया ।...... बह बड़े ही पुण्यात्मा जीव थे। भगवान उन्हें पुन: ऐसा ही जीवन दें जिससे वह जन्म जन्म समाजकी सेवा करते रहें और धर्मवृद्धि होती रहे। कासगंज
गिरीश जैन
भाई कामतापसादजीने जैसी प्रभावना व प्रचार जैन शासनका देश व देशान्तरमें किया वैसा करना बहुत दुर्लभ है। साहित्यकी तो आपने अनुपम सेवा की है। वात्सल्य गुण तो बापमें कूट कूट कर भरा था। ऐसा मान होता है कि आप अपने मन्दिरजीकी प्रतिष्ठाकी ही इन्तजारी कर रहे थे। जैन बाँच कम्पनी, दिछो
प्रेमचंद जैन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org