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________________ . १३१ कामताप्रसादजी एक अध्ययनशील, कर्मठ, समाज सेवक रहे......मैं जानता हूं उनका मारा जीवन साहित्यसेवामें ही बीता है।...... कामताप्रसादजीको जैन धर्म पर अटर श्रद्धा रही। के० मुजवली शास्त्री, सम्पादक-गुरुदेव । मुडबिद्री "जैन समाजके एक ही नि:स्वार्थ निर्भीक एवं उत्साही कार्यकर्ताका अभाव समाजके किस सहृदय व्यक्तिके लिये दुःखदायी न होगा? धर्म प्रचारके लिये बाबूजीने अपना सर्वस्व समर्पित कर समाजके सामने एक आदर्श उपस्थित किया था। ऐसा कर्मठ कार्यकर्ता निकट भविष्यमें प्राप्त हो सकना असम्भव है।" प्रकाश शास्त्रो हितैषी"-संपादक, सन्मति सन्देश, ५३५ गांधीनगर-देही ३१. हमें ऐसी आशा नहीं थी कि बाबूजी हमें अनाथ करके इतनी जल्दी महाप्रयाण कर जायेंगे । मेरी लेखनी थर्रा रही है, कुछ लिख नहीं सकता। रतनेशकुमार जैन-रांची, - सम्पादक-अहिंसक जीवन । अहिंसा तथा जीवदयाके प्रचार क्षेत्रमें उससे हमें शुभ-प्रेरणा मिठी थी। वे जैन शास्त्र तथा इतिहासके प्रकांड विद्वान थे। महेशदत्त शर्मा-पम्पादक, गोरक्षण-वाराणसी। देश समाज और धर्मकी महान विभूति उठ गई। इस महाअसने बजे मारी बाहिस्य और धर्मकी सेवा की। अखिल विश्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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