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________________ ( १२९) विश्वकी दृष्टिमें-डा० कामताप्रसादजी डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल शास्त्री, एम० ए०, पी० एच०डी० जैन माहित्य शोध संस्थान जयपुरसे लिखते हैं-वे जैन साहित्यके उत्कृष्ट विद्वान थे जैन इतिहासकार थे और अपने लेखों एवं पुस्तकोंके द्वारा जो मूल्यवान साहित्य उन्होंने देश व समाजको दिया वह सदा उनके अमरगीत गाया करेगः ।......बाबू साहब इतने महान होते हुवे भी लन जैसी सादगी, मान्यता एवं महृदयना मिलना बड़ा मुश्किल है। यद्यपि वे मिशन के सर्वोपरि नेता थे लेकिन उन्हें अभिमान तो छू भी नहीं गया था। वे अपने साथियों एवं शिष्यों में बैठकर अपना अस्तित्र खो बैठते थे। ३०-५-६४ श्री गुरूबचन्द जैन बोलोम० ए० एल० बी० लेखा निरीक्षक दिल्लीसे "उनके दर्शन करके ऐस्ट! लगता कि एक देवना पुरूषके दर्शन कर रहा हूं। हृदयको शान्ति मिलती, उनके सान्निध्यमें बैठकर चची करने में । अपी बाबू जयभगछानजी जैन व श्री सिद्धसेनजी गोयलीयके आकस्मिक निधनको क्षति पूर्ति हो हो नहीं पाई थो कि उनकी क्षति पुतिका साधन जुटानेबाले स्वयं भी चले गये।" २२-५-६४ ___ गांधीझे पद-चिह्नों पर प्रो० पृथ्वीराज जैन सम्पादक । विजयानन्द अम्बाला (पंजाब) ___ "श्री कामताप्रसादजी जैन धर्म व इतिहासके मर्मज्ञ विद्वान, अनुभवी, एवं दूरदर्शी पत्रकार, प्रसिद्ध लेखक, तथा जैन शासनके अनथक सेवक थे। विदेशमे जैन धर्म और अहिंसाके प्रचारार्थ उन्होंने श्री बीरचन्द राघव, श्री गांधी, बैरिस्टर चम्मतरावजी, . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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