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गया पर उनके दर्शन प्राप्त करनेका सौभाग्य न मिठा । समाजको बाबूजी द्वारा दी गई सबसे बड़ी भेट योग्य पुत्रके रूपमें श्री वीरेन्द्र नेत्रोंसे गंगा-यमुना प्रवाहित कर रहे थे । वे यही बोले" मेरी छत्र छाया आजसे उठ गई... मुझे तो कल ही फरूखाबाद जाते समय ऐसा लग रहा था कि बाबूजी मंजिल तक न पहुंच पायेंगे पर समय किसने देखा है " उस समय बाबूजीके कार्योंसे सबका जी भर आता था, न तो श्री बीरेन्द्र कुछ बतानेकी सामर्थ्य में थे और न उपस्थित लोग कुछ भी सुनने की सामर्थ्य में ।
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फर्रुखाबाद जानेसे पूर्व मन्दिरजीके बाहर से दर्शन कर भगबानको मस्तक नवाया था। एक दिन 'तत्वानुशासन' नामक ग्रन्थका स्वाध्याय भी करते रहे। अनेक दवायें बाई पर अंग्रेजी दवाओंको दो उन्होंने प्रयोग ही नहीं किया। आयुर्वेदिक और होम्योपेथिक दवाओं को ही प्रयोग में लाये अंग्रेजी दवाओंमें पशुओं के अंश होने के कारण उन्हें कभी भी प्रयोग में नहीं छाये लगाने की दवा Preparation " H” बताई थी पर उसमें H" शार्क मछली का तेल होनेके कारण लगाने से मना कर दिया । वैसे मैं स्वयं उनकी मृत्युके एक सप्ताह पूर्व घर पर मिलनेके लिये गया |
उस समय स्थानीय एक सज्जन औषधि बता रहे थे, जब वह सज्जन औषधियों के नाम लिखाकर चले गये तब वे मुझसे यो बोले- "इन औषधियोंके बारे में जानकारी जब करूंगा कि आखिर इनमें कोई ऐसा तत्व तो नहीं जो विपरीत हो ।" धन्य थे बाबूजी और उनकी अहिंसा तथा उदारताकी वृत्ति 'जिसके कारण 'जिओ और जीने दो' के मूलमन्त्रको उन्होंने अपने जीवन में पूरी तरहसे उतार लिया था। और आचरण के द्वारा ही मिलनेवालोंको शिक्षा दिया करते थे ।
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