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( १२५) अतः कारके लिये एटा फर्रुखाबाद आदि जगहों पर दौड़ना पड़ा जिसमें भी लगभग १ दिन निकल गया। तब फर्रुखाबादसे ऐम्बुलेंस कार मंगवाई गई जिससे दि. १७ मई -४ दिन रविवार तिथि वैशाख शुक्ल पक्ष ६ सम्बत् २०२१ को शामके ६ बजे फरुखाबाद प्रस्थान किया लेकिन अलीग से १६ मील दूर मागम हो समाजके दुर्भाग्यस्से सह महान विभूति खदेवके लिये चिदा हो गई।
नहरके किनारे सापके घने दृश्रा, चंदाकी खिली हुई शीतल चांदनी थी, वहां कार रोककर स्ट्रेचरखे उतारा गया । मृत्यु के समय भी वे मुस्करा रहे थे। बेचैनी अवश्य थो, या उनकी और उनका ध्यान ने गमा, लाणा 'छत को हो थी। बाबू चौने समाधि
जाने की इच्छा प्रकट की। उनके पुत्रने समझाते हुये कहा, "आप स्वयं विद्वान है अत्मा नहीं मरती है, बरूर बदलने के समान जोबारमा बोका बदलता है " उभर पास में ही बैठो बड़ी पुत्री श्रीमती सरोजिनी जमोकार मंत्रों का उच्चारणा कर दी थी। उनके दामाद श्री सुसलेमन्त व कायमगंज विलासी श्री इन्द्रसेनजी, सेवक मोती, और पौत्र चि० ऋषम सेवामें जुटे थे। अन्त में जमो सहे...' मंन्त्रका सञ्चारण किया और ऐसी नींद सो गये जो क्रमो उठने की आशा ही नहीं। चेहरा परम शान्तिमय था। और भी क्या चाहिए जिसने जीवनभर सेना, सत्य, संयम, साधना, और स्वाध्यायको अपने जीवन का अंग बना विया था, फिर उसे शांत्ति तो मिलनी ही चाहिए थी।
रात्रिके लगभग दो बजे एक ट्रक द्वारा उनका शब अलीगंज लाया गया और रात्रिके अंतिम प्रहर में ही जिसने सुना दौड़ा गया और शव यात्रामें सम्मिलित होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी तथा दाह संस्कार किया गया। उस समय ऐसा लगा मानों अलीगंज अनाथ हो गया। प्रातः होते ही मैं भी उस महान तपस्वीके घर
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