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________________ ( १२३ ) महान नेताका महा प्रयाण विश्वकी महान विभूति, विश्व में अहिंसा सिद्धान्तको फंडानेकी इच्छा रखनेवाले और निस्वार्थ समाज सेवक "डॉ० कामताप्रसादजी जैन" पिछले ३० वर्षोंसे अर्श रोग से पीड़ित थे । सितम्बर-अक्टूबर ६४ से रक्तस्राव भी अधिक हो रहा था । बीच में कुछ स्वास्थ्य अच्छा जान पड़ा तो फरवरी ६४ में वेदी -- प्रतिष्टोत्सव व जैन मिशन कार्यालयका उद्घाटन और अहिंसा सम्मेलनका आयोजन किया। कुछ स्वास्थ्य सुधर पाया था स्थिति में सम्मेलनके कार्य में दौड़ धूर करते रहे। सम्मेडन के बाद फिर उनका स्वास्थ्य खराब होता गया । बीच में कुछ स्वरा भी उसीमें सभी कार्य करते है। मई के दूसरे सप्ताह में शारीरिक दुर्बकता बढ़ती ही चली गई । धर्मपत्नी मृत्यु हुई तबसे भी एक चोट पहुंची, अपने आत्मीय परिजनका जो प्रत्येक कार्य में सहायता देनेवाली हो, का विछोद असहनीय रहा। धर्मपत्नीको धार्मिक प्रवृत्ति, उदार स्वभाव, मधुरभाषा, अतिथिसत्कार, और प्रेमभावसे घरसे लेकर बाहर तक सभी प्रभावित थे। उधर प्रिय पुत्री श्रीमती सुमनकीमानसिक स्थिति बहुत बिगड जाने से भी बाबूजी बहुत दुःखी रहने लगे, उसकी चिकित्सा में काकी रुपया तो व्यय करना ही पड़ा तथा समय और श्रमको आहुति भी दी। उन्होंको वास्तविक रूपसे दुःख तो इस बातका था । सुमनकी अस्वस्थताको अनेक लोग बहानेबाजी समझते थे । समयकी गतिको कौन जानता है । २४ अप्रैल ६४ का दुर्भाग्य पूर्ण दिन आया हो। मिशन कार्यकर्ता तथा प्रेस कर्मचारी श्री रामसनेही शाक्यको अपनी जीवनलीला समाप्त करनी पड़ी। विनय, सदाचार, चfत्र, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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