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महात्मा भगवानदीन, श्री जैनेन्द्रकुमार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, गुरुदयालजी मल्लिक, श्री रिषभदासजी रांका आदि भारतीय विद्वानों तथा सन्त योनोसुके ताकानोजी (जापान), डा० रिचर्ड डेलो (लन्दन), श्री तानयून शान (चीन), प्रो० दुश्शी (इटली) और डा० विलियम हेनरी ( इंग्लैण्ड) आदि विदेशी विद्वानों के गृहस्थ धर्म, तथा वैवाहिक जीवनसे सम्बन्धित पत्र भी प्रकाशित है । डा० रिचर्डने विवाहको यथार्थ प्रेम, सन्त योनोकेने 'पवित्र संस्कार', जैन जगत के सम्पादकने 'प्रवेशद्वार', श्री मलिकने 'विवाह दो स्वर मिलकर समरस होनेका संगीत' तथा 'द्विवेदी आशाका संदेशवाहक' बताया है
इस प्रकार यह पुस्तक मनोरंजक, प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद है । यद्यपि इस पुस्तकका प्रकाशन साहित्यिक प्रेमोपहार के रूपमें हुआ था, पर अब भी सबके लिये समानरूपसे उपयोगी सिद्ध हो सकती है
✩ तत्वार्थ सूत्र सार्थ
यह गुटका साइज की ११४ पृष्ठवाली बाबूजीद्वारा सम्पादित तथा अनुवादित की हुई है जो १९५० में प्रकाशित हुई । ईसाई धर्म में बाइबलको जो महत्व है तथा आयें संस्कृतिको माननेवालों की जितनी आस्था भगवतगीता पर है ठोक उतनी ही आस्था जैन धर्मवाले संस्कृत भाषा के प्राचीन जैन ग्रन्थ 'तत्वार्थसूत्र' पर रखते हैं। ईसाकी प्रारंभिक शताब्दियों में जब संस्कृतका विशेष प्रचार हुआ तो जैनियोंने भो संस्कृत भाषा में ग्रन्थ रचनाका बिचार किया। इस कार्यका प्रारंभ सौराष्ट्रके गिरिनगर नामक शहर के द्वैपायक नामक जैन गृहस्थने किया और दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग : " नामक सूत्र रचकर घरके खंभे पर लिख दिया । जब उनकी अनुपस्थित में उमाखाति आचार्य आहार लेने घर गये
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