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( १२० तो उस सूत्रका देखा और 'सम्यक' शब्द बढा दिया। गृहस्थ जब घर लौटा तो बड़ा प्रसन्न हुआ और आचार्यकी खोज कर 'तत्वार्थसूत्र' ग्रन्थकी रचनाके लिये उनसे प्रार्थना की, लो बाद में पूर्ण हुई। इसमें चारों अनुयोगों अर्थात् प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग और द्रव्यानुयोगका समावेश किया गया। इसमें १० अध्याय हैं।
पहले अध्याय में तत्वबोध पाने योग्य ज्ञानकी विवेचना को गई है तथा मोक्षमागकी सिद्धि के लिये जिन सात तत्वों, रत्नत्रय धर्म, नय निक्षेप, तथा पांच ज्ञानका वर्णन किया है जो इसके अन्तर्गत है द्वितीय अध्यायमें जीवके औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदायक और परिणामक भावोंकी विवेचना की है। तीसरे अध्यायमें सात भूमियों उनकी नदियों पर्वतों देवी, देवताओं, रंगों तथा बिभिन्न दिशाओंका वर्णन है। चौथे अध्याय में देवताओंके चार निकाय भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक बताये हैं। __ पांचवें अध्यायमें धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल चार द्रव्योंकी व्याख्या, छठे अध्यायमें आसक्तत्वकी व्याख्या करते हुवे कर्म सिद्धांतकी वैज्ञानिकताको, सातवें में व्रतोंकी य ख्या नधा आदर्श जीवन व्यतीत करने के तरीके, आठवें में कर्मों के बधसे सम्बन्धित, नवमें आस्रबोंका निरोध तथा अंतिम अध्य यम केवलज्ञानकी चर्चा की गई है। पहले प्रत्येक मंत्र संस्कृत में लिखा है और फिर सरल भाषामें हिन्दी में अनुवाद किया गया है।
बाबूजीने 'तत्वार्थ सूत्र' की महत्ताके सम्बन्धमें लिखा है, "भान इस पर विश्वास लाये और ज्ञान पाये और शक्तिको न छिपाकर इसका पालन करे। वह स्वयं सुखी होगा और डोकको सुखी बनावेगा।
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