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गया था जिसकी पूर्ति उनके पुत्र बीरेन्द्रप्रसाद जैनने की । जो इच्छा बाबूजी की थी वह तो पूर्ण हुई पर बाबूजो स्वयं अपनी इच्छाको खाकार होते देख न सके, यह एक दुःखका विषय है । क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संग्रम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य जैसे धर्मके दशलक्षगों का वर्णन सभी हिन्दी अंग्रेजी पढ़े लिखे व्यक्तियोंके लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है ।
अगस्त ६४ में प्रकाशित हुई, कवि श्री पद है जिनका हिन्दी पद्यानुवाद श्रीमती किया है तो अंग्रेजी में अनुवाद बाबूजीने
इस पुस्तक में जो धू अपभ्रंश भाषा सरोजनीदेवी जैन ने किया है।
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प्रतिमा लेखसंग्रह
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वि० स० १९९४में सम्पादित की हुई ४० पृष्ठकी तक है। इसमें मैनपुरी उ० प्र० के दिगम्बर जैन पंचायी वडा, कटरा, लोहिया अग्रवाल, भगतजी के मन्दिरों जो मूर्तियां हैं, उन सभी मूर्तियां, जिनमें लिंग और चिह्न प्रकट नहीं होते, का वर्णन किया है। मूर्तियों का रंग, विभिन्न चिह्न, आकार, ऊंचाई, स्थापना समय, और पाषाणकी किस्म आदि के बारे में विस्तार में दिखा गया है। ताम्रपत्रको प्रशस्तियों, डिंग, चिह्न साइत प्रतिमायें, यंत्रो की प्रशस्तियों, यंत्रके लेखसंग्रहों, कुटुम्ब श्रावक-श्राविकाओं, पंडित, राजा-महाराजाओं, नगरों बडडी, अटेर, अजमेर, आरा, इष्टिकापथ, अखरो, कसिमीग्राम, जोधपुर, बनारस, विलसो, महिदपुर, मैनपुरी आदि २२ नगरों ], और जातियों [ अंग्रेोत क्रकेश, खंडेलवाल, गोळानार, गोलसिगारा, जेसबाट, धाकौ, चोरबाड, वुते जाति, माहिमवंश, राहत, और श्रीमाल आदि १८ जातियोंका वर्णन भी किया गया है।
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