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अपना स्थान सुरक्षित कर सकें, जहांपर कि महावीरका नाम अभी भी जानना आवश्यक है । )
मेरी भावना
इस छोटी सी पुस्तक में २२ हिन्दी के पद हैं जो पं० जुगलकिशोरजी द्वारा रचित है। इन हिन्दी पदका अनुबाद अंग्रेजी में बाबूजीने सन् १९४९ में किया था। हिन्दी के पदोंको लाखों व्यक्तियोंने पसन्द किया । इसलिये यह आवश्यकता अनुभव हुई कि इसे अंग्रेजी में लिखकर और अधिक प्रसारित किया जावे । श्री अजितप्रसादजी सम्पादक जैन गजटने अंग्रेजी में अनुवादकी प्रेरणा दी और बाबूजी द्वारा बादको पूर्ण हुई। इसमें व्यक्तिकी ईश्वर के प्रति आदर्श प्रार्थना है जो एक भक्त सच्चे हृदयसे नित्य सुबह शाम कर सकता है। सत्संग, सन्तोष, शान्त स्वभाव, सत्य व्यवहार, जीवों पर दया, न्यायमार्ग और सहनशीलता की प्रार्थना की भावना इन पदों में है। मधुर वाणीके लिये मेरी भावना के स्वर देखिये :
फैले प्रेम - परस्पर जगमें, मोह दूर पर रहा करे । अधिक कटुक कठोर शब्द नहिं, कोई मुखसे कहा करे |
May Universal love pervade the world and may ignorance of attachment remain far away. May no body speak unkind, bitten and harsh word! [ अहिंसा-संसार की समस्याओं का सही निदान ]
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