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न मध्यन्ते भवान्तस्माते ये जातिकृताग्रहाः ॥
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ब्राह्मण आदि जाति मदमाते हैं देहाश्रित वे मति हीन । ये मद केवल भवके कारण, करें आत्म संसृति लीन ॥ हो नहिं पाते मुक्त कभी वे जो रहें सदा मदमें लवकीन | जाति बडप्पनके आग्रहसे जन्म मरण करते नित्य नवीन ॥
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तीर्थङ्कर महावीर
यह ३४ पृष्ठकी अंग्रेजी में लिखी पुस्तक है, जून ६१ में इसका प्रकाशन हुआ । इसे दो विद्वानोंने मिलकर लिखा है, एक तो बाबूजी स्वयं ही हैं और दूसरे श्री जय भगवान जैन हैं । इसके आधे भाग में भगवान महावीरका परिचय है तथा शेष भाग में मानवता के लिए उनके जो जो संदेश हैं वह बताये गये हैं। इसके सम्बन्ध में विचारक श्री वुडलेन्ड फाइबर (The Marquis of st. Innocent and the Preident of the international vegetarian union) ने लिखा है
This brochure about Lord Mahavira, The last of the Tirthankars, has been written with such admirable clearness and simplicity, it needs no prefaee......May this brochure find its way into other countries where Mahavira's name is yet to be known.
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( 'तीर्थंकर महावीर' नामक पुस्तक, जोकि अन्तिम तीर्थंकर के विषयमें लिखी गई, वह ऐसी प्रशंसनीय स्पष्टता एवं सरलता से लिखी गई है कि इसके लिए किसी भूमिका की आवश्यकता नहीं । मैं कामना करता हूं कि यह पुस्तक अन्य देशों में भी
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