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________________ (९७) अपना तथा ढोकका हित साध सकता है। वह बाद अथवा राष्ट्रवादसे ऊपर उठकर ढोक सकता है तथा हिससे अहिंसक हो सकता है ।" X x X नव रत्न पत्र बाबूजी द्वारा रचित इस पुस्तक में अरिष्टनेमि, चंद्रगुप्त, खारवेल, चामुण्डराव, मारसिह, गंगराज, हुन्छ, सावियदे और सवी शतकी नौ ऐतिहासिक कहानियां हैं। ये जैनधर्मके डी नहीं है वरन् विश्वके विभिन्न रत्नोंमें प्रसिद्ध हैं। अतिमायें आस्था रखनेवाले जैन बोरोंकी वीरता, साहस, धैर्य, पाकम, राज्य संचालनको कुशल और युद्ध में बड़े गनबकी इन कहानियों प्रकट होती है। मजबूरी ओर व्यासाना लंड लगानेवालोंके लिये बाबूजी की यह पुस्तक सुट्टी चुनी है Jain Education International संकीर्ण समुदायकल्याणवादी बन SANTOS 43 स्वामी कुन्दकुन्दाचार्यकी सूक्तियां १४० प्रीय पुस्तकका प्रकाशन सन् १९६२ में हुआ । ३५ पृष्ठ स्वामीजीके जीवन के सम्बन्ध में बताया गया है। तीर्थकरीकी महत्ता भी बताई है। दोकानेके बाद ज्ञानका प्रकार जिन जिन सन्त महाराओं द्वारा हुआ उनका भी विवरण दिया हुआ है। श्रीनने अन्य संघ सम्मेलन करके बचे हुये अंगज्ञानको लिपिबद्ध करनेका प्रस्ताव रखा। क्यों श्रुतज्ञान धीरे धीरे लुप्त होने लगा है अतः आगे आनेवाली पीढ़ियोंको ज्ञानार्जन के लिये लिपिबद्ध करनेकी अत्यन्त आवश्यकता अनुभव की गई । उसी समय स्वामी कुन्दकुन्द महाराज अवतरित हुये । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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