SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (९८ ) पंचमकाल में स्वामीजी पूज्यनीय माने गये और आज भी दिगम्बर सम्प्रदाय ही नहीं वरन् पूर्ण जैन समाज उन पर गर्व करता है। विभिन्न पट्टावलियोंके द्वारा लेखकने उनके जन्म तथा अन्य जीवन से सम्बद्धित घटनाओंको बताया है। स्वामीजीके चरित्र पर 'पुण्यास्रव तथा 'कुन्दकुन्दाचार्य चरित्र' के आधार पर बताया गया है। स्वामोजो पूर्वजन्म के संस्कारोंके प्रभाव से आचार्य, महाज्ञानी, और तपस्वी बनकर सामने आये। विभिन्न हस्त बिखित ग्रन्थों, शिलालेखों, जनश्रुतियों और गाथाओंके आधार पर स्वामीजीका व्यक्तित्व लिखा गया है। स्वामीजी द्वारा रचित अब तक जितने ग्रन्थ उपलब्ध हुवे हैं उन १४ ग्रन्थों के नाम भी दिये हैं। सूक्तियोंको प्रकाशित करनेका प्रमुख उद्देश्य बाबूजीने यह बताया है कि जैन परम्पराके जो महान प्रकाश स्तम्भ रहे हैं और जो महान योगिराज एबं सन्त होनेके साथ साथ सर्वज्ञतुल्य वाणी के अधिष्ठाता रहे, उन परमपूज्य प्रातःस्मरणीय भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य स्वामोको अमूल्य श्रुत सूक्तियां उपस्थित करना, भानव मानवको सम्यग्ज्ञान के आलोक में ले आना है। इस लिये उनके 'पाहुड़ एवं 'अनुपेक्जा' ग्रन्थोंसे सूक्तियोंका संग्रह किया जा रहा है । प्रस्तुत सूक्तियां रत्नत्रय धर्मको लक्ष्यकर संग्रह की गई हैं ।" इसमें संस्कृतको सूक्तियोंको बाबूजीने अंग्रेजी में अनुवाद किया है ताकि स्वामीजीकी वाणोका लाभ केवल संस्कृत व हिंदीबाले ही न उठाकर अंग्रेजी बाले भी ले सकें। पहले एक संस्कृत की सूक्ति ही है, बादको हिन्दी पद्यमें श्री बीरेन्द्र जैनका अनुवाद है और नीचे अंग्रेजीमें अनुवाद है। इसमें १०३ सूक्तियोंका संकलन है । एक सूक्तिको उदाहरण स्वरूप आपके सामने रख रहे हैं Jain Education International " For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy