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( ९६) और स्वामी शिवानंद सरस्वतीका विचार दिया है वहां भौतिकबादके संगीत अलापनेवालोंको आल्ट्रावायलेट किरणोंसे संबंधित वैज्ञानिक तथ्य उपस्थित किये हैं। अन्तमे धर्मको व्यवहारिकता पर लिखा है-" जैन धर्म महान व्यावहारिक धर्म है वह ठोक कहता है कि जीवनरूपी कारको ठीकसे चलानेके लिये व्रत और नियमका ब्रेक जरूर लगाओ। ब्रेकके विना जीवन संकटमें पड़ सकता है।"
जैन धर्मः उसकी विलक्षणता और विश्वको देन ___ यह २० पृष्ठीय छोटीसी पुस्तक है। इसमें बुद्धिजीवी व्यक्तियोंके लिए ऐसी सामग्री प्रस्तुत की गई है जो तककी कसौटीपर खरी उतर सके। आज दैनिक जीवनसे लेकर राष्ट्रीय जीवन तकमें ऐसी ही अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिनका निराकरण जैब धर्मके माध्यमसे हो सकता है। इसमें जैनधर्मकी झांकी प्रस्तुत की गई है। मानवको पुरुषार्थी बनने, अपने आपको पहिचानने, इन्द्रियवासनाको आसक्तिको त्यागने, अपना ही मनन करने, ईश्वर बनने के लिए अज्ञान और अश्रद्धाके परदेसे बाहर निकलने. विवेकसे काम लेकर प्रत्यको पहिचानने और सबसे प्रेम करने की अनूठी शिक्षाएं इस पुस्तकमें भरी पड़ी हैं । दुःखका कारण और उससे छुटकारा मिलने के उपाय, अणुवाद, अपरिग्रहवाद तथा अनेकांतवाद जैसे प्रमुख सिद्धांतोंको स्पष्ट रूपमें समझाया है। __ जैनधर्मके प्रमुख आधार स्तम्भ अहिंसाको वलवानोंका शृङ्गार
और शक्ति बताते हुये अपने समान सबको समझने, अंडा और मांसके प्रति घृणाको दृष्टि रखते हुए शाकाहारी बने रहनेकी बात सुझाई गई है। इसकी विलक्षणताके संबंधमें बाबूजीने लिखा भी है-"जैनधर्मके सिद्धांत विलक्षण होते हुए भी तर्क सिद्ध तथा बद्धि ग्राम हैं। सर्वोपरि उनका ठीकसे पालन करके मानव
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