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________________ ( ९५ ) "मांस और मछलीसे अन्न संकटकी दशा दूर नहीं हो सकती थी। फिर भी मांस खानेको प्रोत्साहन देना जानबूझकर अपने पैरमें कुल्हाड़ी मारना है । आवश्यकता तो जगह२ पर शाकाहारी क्लब और होटल खुलवानेकी है।" सरकार द्वारा मत्स्य व्यापारको प्रोत्साहन देने की स्थितिसे बाबूजी बड़े दुःखो थे। उनको हार्दिक पीड़ा इन शब्दोंसे प्रकट होती है-"खेद है कि भारत सरकार उल्टे बांस बरेलोको लाद रही है। उसने मत्स्य व्यापारादिको प्रोत्साहन ही नहीं दिया है बल्कि मांस खानेका प्रचार भी कर रही है जो घातक है। वस्तुतः खाद्य समस्याका हल खेतकी उपज बढ़ानेसे ही होगा।" दिवा भोजन दिवा भोजन ट्रेक्ट के रूपमें लिखी गई २४ पृष्ठीय छोटीसी पुस्तक है जिसके अबतक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। दिवा भोजनका संस्कृति एवं स्वास्थ्यके लिये क्या महत्व है इसका पूरा वर्णन शिक्षाप्रद और उपदेशात्मक ढंगसे किया गया है। विद्वान लेखकने कुसुम और मनोज को पात्र बनाकर बड़े नाटकीय ढंगसे सर्वसाधारणको उपयोगिताको ध्यान में रखकर लिखिी है। प्रायः मनमें जो शंकाएं दिवा भोजनके सम्बन्धमें लोगोंमें उठा करती हैं वह मनोजके मुंहसे कहलनायी गई हैं और उनका समाधान कुसुमसे कराया गया है। ___ यजुर्वेद आ'हक, वसुनन्दि श्रावकाचार, सुभाषित रत्न सन्दोह, चंद्रप्रभपुराण, 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय', योगवाशिष्ठ, महाभारत ( शान्तिपर्व ), माकण्डेय पुराण, पद्मपुराण, मनुस्मृति, आयुर्वेद शास्त्र, चरकके आयुर्वेद सूत्र नेसे अनेक उपयोगी और प्रचलित अन्धों के आधार यह सिद्ध किया है कि प्रत्येक व्यक्तिको अपना भोजन शामको, सूर्यास्तसे पूर्व ही कर लेना चाहिए। अध्यात्म वादियके लिए जहां एक ओर भगवान मह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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