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________________ ( ९४ ) मानवका प्राकृतिक भोजन फल, शाक और अन्न है २४ पृष्ठीय छोटो पुस्तक जिसका नाम "मानवका प्राकृतिक भोजन फल, शाक और अन्न है ।" बाबूजी द्वारा लिखित यथा नाम तथा गुणके अनुरूप ही दिखाई पड़ती है । लोगों में शुरू से यह धारणा चली आ रही है कि आदिकाल में मानव हिंसक प्रकृतिका था पर इस मान्यताको गलत बताकर यह सिद्ध किया है, "प्रारम्भ में मानव हो नहीं, पशु पक्षी भी अहिंसक थे और प्रेमसे रहते थे ।" पुरातन कालके प्राणी प्रकृति के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते थे । बागे अदनमें आदम और हव्वा तथा बहिश्त में जन्मनेवाले पुण्यात्मा सभी जलाहार पर जीवन व्यतीत करते थे। सुमेरिया के ३६०० वर्ष पुराने लेख, अमेरिका के रिसर्च विश्व विद्यालय के प्राध्यापक श्री एशले भानटेगूके प्रयोग, महात्मा गांधी के विभिन्न परीक्षण के आधार पर बाबूजीने व्यक्तियोंको शाकाहारी बननेका परामर्श दिया है । वेद, मनस्मृति, महाभारत, ईसाई, इस्लाम, पारसी, कन्फ्यूशस, शिन्टो, जैन, बौद्ध और लाडसे धर्म तथा विभिन्न ग्रन्थोंके उन प्रसंगों को स्पष्ट रूपसे खोल खोलकर उन धर्म-प्रेमियोंके लिये - रखा है जो अन्ध विश्वासी तथा ढोंगा हैं और धर्मके नाम जीवों की हत्या में लगे हैं। मांसाहारको समाजोन्नति में बाधक बताते हुये वैज्ञानिक, शारीरिक और आर्थिक दृष्टिसे आवश्यक घोषित किया है। दीर्घायु और खानन्दका जोवन व्यतीत करनेके ढिये तो शाकाहार महत्वपूर्ण है ही, साथ ही उन बुद्धिहीन व्यक्तियों को जो खाद्य की समस्या हल करनेकी हामी मांसाहारसे भरते हैं उन्हें उत्पादन तथा खाद्य समस्याको पूर्णता के लिबे - शाकाहारी बनने तथा उसका प्रचार करनेके लिये कहा है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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