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________________ (९३) कि अपने विचारों पर दृढ़ रहनेसे विरोधो या मजाक उड़ानेवाले साथी या साधकके रूपमें सामने आते हैं। बीच में कविताएं तथा पद भी दिये गये हैं जैसेसोचा करता हूं भोगोंसे बुझ जावेगी इच्छा जाला । परिणाम निकलता है लेकिन मानों पावक में घी डाला ।। तेरे चरणोंकी पूजासे इन्द्रिय सुखकी ही अभिलाषा । अबतक न समझ पाया प्रभु, सच्चे सुखकी परिभाषा ।। विभिन्न संस्कृताचार्यों, वैज्ञानिको तथा सन्त महात्माओंके उद्धरण उपदेशात्मक ढंगमें पढ़कर जीवन की दिशा बदलती हुई दिखाई पड़ती है। राफलेंड, हडसन, मैथलीशरण गुप्त, स्वामी रामतीर्थ, और डॉ. कैरें- जैसे अनेक देशी विदेशी विद्वानों के विचार भो दिये गये हैं। लीजिए बाबूजीने राकेशके मुंहसे अपनी बात किस तरह कहलवाई है। राकेश अपने मित्रों को विनयकी आवश्यकता समझा रहा है " बीजिए आप अधिक 'बोर' न होइये। मैं संक्षेपमें ही आपको बताता हूं। विनयभाव मनुष्यमें स्वभावसे है--विनयसे मनुष्यमें पात्रता आती है। विनयभाव जगते ही मानवके अन्तरमें अनुशासन, सत्यता, श्रद्धा और भक्ति उमड़ पड़ती है जिसका परिणाम यह होता है कि वह व्यक्ति गुरुजनोंकी संगति में रहकर अपने जीवनको शुभ परिणति में लगा लेता और सुखी होता है।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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