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सम्यग्दर्शन के आठ अंग
र आचार्य रजनीश सम्यग्दर्शन के आठ अंग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इनका सामान्य परिचय ग्रन्थ में अन्यत्र भी आया है, किन्तु आचार्य रजनीश की अपनी चिन्तनशैली है, अत: उनके विचार 'जिन-सूत्र' ग्रन्थ से यहां संगृहीत सम्पादित हैं।
सम्यग्दर्शन के आठ अंग हैं-निःशंका, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि, उपगूहन, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना।
सम्यग्दर्शन का पहला अंग, पहला चरण है-नि:शंका अर्थात् अभय। मन में कोई शंका न हो, कोई भय न हो ।लेकिन हम तो बड़ी आशंका से भरे हैं। और हमारी आशंकाएँ बड़ी अद्भुत हैं। हमारी आशंकाएँ ऐसी हैं कि जैसे कोई नंगा कहे कि मैं नहाऊं कैसे, क्योंकि नहां लूंगा तो कपड़े कहां निचोडूंगा, कपड़े कहाँ सुखाऊंगा। नंगा है, कपड़े हैं नहीं, लेकिन स्नान नहीं करता इस डर से कि कहीं कपड़े भीग न जायें । भिखारी है, डरता है कि कहीं चोर-लुटेरे न मिल जाएं। पास कुछ भी नहीं। लुटेरे मिल भी जाएंगे तो उन्हीं को लुटना पड़ेगा, कुछ देकर जाना पड़ेगा। लेकिन, भिखारी भी डरता है कि कहीं चोर-लुटेरे न मिल जाएं। हमारी दशा ऐसी ही है। हमारे पास कुछ भी नहीं और आशंका बहुत है कि कहीं खो न जाये।
कभी तुमने सोचा, क्या है तुम्हारे पास जो खो जायेगा? हाथ तुम्हारे खाली हैं, हृदय तुम्हारा रिक्त है, सम्पत्ति के नाम पर कुछ ठीकरे इकट्ठे कर रखे हैं जो मौत तुमसे छीन ही लेगी। तुम लाख उपाय करो तो भी अन्ततः मौत से तुम हारोगे। कितने ही बचो, इधर बचो, उधर बचो, इधर छिपो उधर छिपो, एक न एक दिन मौत तुम्हारी गर्दन पकड़ ही लेगी। अन्ततः मौत जीतेगी, तुम न जीत पाओगे-इतनी बात निश्चित है। बीच में कितनी देर तुम धोखा दे लेते हो, मौत को इससे क्या फर्क पड़ता है? अन्ततोगत्वा मौत तुम्हारी गर्दन पकड़ लेगी और तुम्हारे ठीकरों को उगलवा लेगी। जिसे तुमने इन्कमटैक्स आफिस से बचा लिया होगा, उसे तुम मौत से न बचा सकोगे। जिसको तुमने चोरों से, डाकुओं से बचा लिया होगा, उसको तुम मौत से न बचा सकोगे। ___ यहां, पहली तो बात तुम्हारे पास कुछ है नहीं, और जो तुम्हारे पास है वो सब मौत छीन लेगी। तो गंवाने का डर क्या है? भय क्या है? लेकिन तुम बड़े भयभीत होते हो।
महावीर कहते हैं, ठीक से अपनी स्थिति को समझो। आशंका का कोई कारण ही नहीं है। आशंका के लिए जरा भी कोई आधार नहीं है। आशंका कल्पित है और जब आशंका गिर जाये, और तुम देख लो खुली आंख से कि आशंका की तो कोई बात ही नहीं है, मेरे पास कुछ है नहीं... । * प्रमुख विचारक एवं व्याख्याता
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