SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शन : विविध ३६७ ईश्वर में श्रद्धा को शक्ति प्रदान करेगा ताकि उनके तन और मन में कूट-कूट कर श्रद्धा व्याप्त हो जाये । मूसा की भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई । यरूसलम और उनके पवित्र मंदिर को रोमन शासकों ने नष्ट कर दिया। यहूदी वीरता से लड़े, परन्तु टिक नहीं सके । उनको शहर से बाहर निकाल दिया गया । वे बिखर गये और अपनी धार्मिक पुस्तकें साथ लेकर अन्य देशों की तरफ पलायन कर गये । करीब दो हजार वर्षों तक उन्होंने ईसाइयों और मुसलमानों के हाथों घृणा और तिरस्कारपूर्ण जीवन व्यतीत किया। उन पर अन्य लोग संदेह की दृष्टि से देखते थे । उन्हें अछूत की तरह समझते थे और उन्हें शहर के बाहर 'घेटो' (Gato) में रहने को मजबूर कर दिया था । परन्तु उनके संताप ने उनकी एकता और श्रद्धा को और अधिक मजबूत ही किया । मूसा की आज्ञानुसार वे अपने धार्मिक संस्कारों और रीतिरिवाजों से दृढ़ता के साथ लगे रहे । उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनका ईश्वर दयालु है और कभी न कभी अपने वायदे को अवश्य पूरा करेगा और उन्हें पुनः अपने पूर्वजों की पवित्र भूमि इजराइल को उन्हें दिलायेगा । इस शताब्दी में हिटलर ने यहूदियों पर बहुत अत्याचार किये। बाद में अरब देशों ने दुनिया के नक्शे से इजराइल का नामोनिशान मिटाने का संकल्प कर लिया । परन्तु यहूदियों के सभी राष्ट्रीय शत्रु एक के बाद एक धराशाही हो गये । भारतीय और अन्य देशों के भक्ति-सम्प्रदायों का यह एक सामान्य विश्वास रहा है कि ईश्वर जिस पर कृपा करता है, उसकी बहुत कठोर परीक्षा भी लेता है। ईश्वर की कृपा कोई सस्ती चीज नहीं है । प्रायः लम्बी और कठोर यातनाओं के सामने ईश्वर के प्रति श्रद्धा को बनाये रखना एक असामान्य आत्म-बल से ही सम्भव है । एक राष्ट्र के जीवन में सैंकड़ों वर्षों के उत्पीड़न के बाद भी अपने धर्म और ईश्वर में श्रद्धा को आंच न आने देने का आदर्श यहूदियों ने दुनिया को दिखाया है, जो विश्व के इतिहास में अद्वितीय है । ईसाई धर्म में श्रद्धा का स्वरूप मूसा ने यहूदियों को कहा - " समय आने पर ईश्वर उनमें से ही एक अन्य दूत को प्रकट करेगा जो मेरे जैसा ही होगा ।" कालान्तर में जीसस ने अपने को वह दूत होने का दावा किया। परन्तु यहूदी धर्मगुरुओं ने उन्हें अस्वीकार कर दिया और उन्हें सूली पर चढ़ा दिया । मूसा की तरह ईसा ने भी चमत्कार दिखाने की शक्ति से अपने अनुयायी बनाये | नई बाइबल (New Testament) में ईसा के विभिन्न चमत्कारों का वर्णन है और साथ-साथ विश्व-प्रेम की नैतिक शिक्षाओं और दैविक संदेश का वर्णन है जिसमें नैतिक शिक्षा का वर्णन भगवान् महावीर के जीवन और दर्शन से मेल खाता है । परन्तु जीसस ने अपने दैविक संदेश में श्रद्धा रखने वालों को स्वर्ग के सभी सुखों के पुरस्कार का वादा किया तथा उनका विरोध और निन्दा करने वालों को ईश्वर की कृपा से वंचित रखने और नरक दिखाने की धमकियों से डराया । उनके प्रचारकों ने जीसस के नाम पर एक नये अन्तर्राष्ट्रीय धर्म का निर्माण किया। आदम और ईव द्वारा ईश्वरीय आज्ञा के उल्लंघन की घटना से उन्होंने मूल पाप की धारणा ( Original Sin) को विकसित किया और बताया कि केवल जीसस और उनके दिव्य संदेश में पूर्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy