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________________ सम्यग्दर्शन और आधुनिक सन्दर्भ * x डॉ. शशिकान्त जैन श्रद्धा एवं अन्धश्रद्धा में एक अत्यन्त पतली दीवार होती है। श्रद्धा जहां आत्मकल्याणकारी एवं जनकल्याणकारी होती है वहां अन्धश्रद्धा सबके लिए नुकसान देह । अन्धश्रद्धा से आज राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं यह चिन्ता प्रस्तुत लेख में संकेत करती है कि श्रद्धा का सम्यक् रूप होना आवश्यक है । - सम्पादक 'सम्यग्दर्शन- ज्ञान - चारित्राणि मोक्षमार्गः' सूत्र से सभी स्वाध्यायी श्रावक परिचित हैं। जन्म और मृत्यु द्वारा आवागमन रूपी संसार-चक्र से जीव की मुक्ति का मार्ग है— सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र । इनमें तीर्थंकर प्रणीत तत्त्व के अर्थ में श्रद्धा को सम्यग्दर्शन कहा गया। यद्यपि सिद्धान्ततः जैन विचारणा परीक्षा - प्रधानी है, परन्तु सम्यग्दर्शन का उपर्युक्त स्वरूप इस विचारणा से मेल नहीं खाता। जब हमने तीर्थंकर प्रणीत, जो वास्तव में विगत २००० वर्षों में परवर्ती साधु समुदाय द्वारा भणित है, को श्रद्धान हेतु अन्तिम मान लिया तो परीक्षा के आधार पर समीक्षा का अवकाश नहीं रह जाता और जो कुछ इसके आवरण में लिखा जाता रहा, वह मात्र पिष्टपेषण रहा । यदि कभी कुछ पिष्टपेषण के अतिरिक्त चेष्टा की गई तो उसकी अवर्णवाद के नाम से भर्त्सना की गई । जन साधारण के लिए यह सब 'बाबावाक्यं प्रमाणं' और अन्ध श्रद्धा का पर्याय बन गया, तथा पंडित-साधु वर्ग ने अपने संकीर्ण स्वार्थ में इस धारणा को निरन्तर परिपुष्ट किया । यह विशेषता केवल जैन धर्म की नहीं है। बौद्ध धर्म में 'बुद्धं सरणं गच्छामि, संघं सरणं गच्छामि, धम्मं सरणं गच्छामि' का अभिप्राय भी ऐसा ही है । पहले बुद्ध को बौद्धिक रूप से समर्पण करो, उनके द्वारा बताये गये ज्ञान के लिए उनके भिक्खु शिष्यों के संघ की शरण गहो, और तब उनके बताये आष्टांगिक रूप धर्म का आचरण करो । जैन धर्म में भी सर्वप्रथम इष्ट देव स्वरूप अरहंत और सिद्ध की शरण में जाने की वांछा की जाती है, फिर साधु की शरण में जाने की वांछा की जाती है, और अन्त में केवलीप्रणीत धर्म की शरण में जाने की वांछा की जाती है। जैन और बौद्ध से इतर भारतीय विचारणा में भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग का निरूपण किया गया 1 । भक्तियोग इस व्यवस्था में सर्वोपरि इस अपेक्षा से रखा गया है कि इष्ट के प्रति श्रद्धा और समर्पण मूल है, ज्ञान और कर्म गौण हैं । भारत से बाहर जो धर्म पनपे उनमें इस्लाम और ईसाई सर्वाधिक प्रभावी रहे और भारत के चिन्तन पर भी उनका प्रभाव विशेष रहा । इस्लाम मजहब में ईमान, इल्म और अमल क्रमशः श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र के पर्याय हैं । ईसाई धर्म में भी faith, knowledge और Conduct क्रमशः अर्थवर्गणा को सूचित करते हैं। सेमेटिक सम्पादक, शोधादर्श, लखनऊ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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