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________________ सम्यग्दर्शन : जीवन-व्यवहार ३४३ सम्यग्दृष्टि जीव इनसे एवं इनके सेवन द्वारा होने वाले दुष्परिणामों से सुपरिचित होने के कारण यथासंभव बचते रहने का प्रयास करता है अर्थात् भय खाता है, जबकि मिथ्यादृष्टि जीव को उक्त पाप-प्रवृत्तियां आनंददायी प्रतीत होती हैं। फलस्वरूप रुचिपूर्वक उनका सेवन करता हुआ वह स्निग्ध कर्मों का बंधन कर लेता है ।सम्यग्दृष्टि को ज्ञानी एवं मिथ्यादृष्टि को अज्ञानी के रूप में प्रदर्शित करते हुए उक्त दोनों ही प्रकार के जीवों की पाप के प्रति मानसिकता और उससे प्राप्त होने वाले सुफल व कुफल को श्रीमद्राजचन्द्र ने निम्नांकित दोहे द्वारा अभिव्यक्ति प्रदान की है समझू शंकै पाप से, अणसमझू हरसंत । • वे लूखा वे चीकणा, इण विध कर्म बधंत ॥ अतः सम्यग्दृष्टि जीव सद्विवेक के जागृत होने से जानता है कि पाप कर्म ही संसार-वृद्धि एवं आत्मपतन का कारण है। यही पाप-प्रवृत्ति इहलोक और परलोक को बिगाड़ने वाली एवं जन्म-मरण रूप भयंकर दुःखों की प्रदाता है। संसार में कौन ऐसा प्राणी है जो दुःखों को जीवन में स्थान देगा? अर्थात् सभी सुखाभिलाषी हैं। विशेषतया सम्यग्दृष्टि तो सांसारिक क्षणिक सुखों से परे चिरंतन शाश्वत सुखों की प्राप्ति हेतु सदैव प्रयत्नरत रहता है। अतः दुःखों के कारण रूप पाप को कैसे जीवन में प्रश्रय दे सकता है? परिणाम स्वरूप सम्यग्दृष्टि पाप नहीं करता है। वह सदैव पापों से विलग रहता हुआ जीवन जीता है। पाप नहीं करने का आशय यहां पर यह नहीं है कि उसके बिलकुल भी पाप कर्म का बंधन नहीं होता, अपितु इसका आशय है कि वह मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबंधी सम्बन्धी पापकर्म को न करता हुआ, पापकर्म के अन्य कारणों का भी त्याग कर देता है । खिड़की दरवाजा, अलीगढ़ जिला-टोंक (राज.) ३०४०२३ श्रद्धा है एक ऐसा विश्वास श्रीपाल देशलहरा 'दंसणमूलो धम्मो' “सम्यक्त्वं परमं रत्नम् ” धर्म का मूल सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व अनमोल रत्न है। सम्यग्दर्शन का उजाला सम्यक्त्व की सम्यक् आप्ति घट के अन्दर भर देती है मन में विशुद्धि जब होता है, सम्यक्त्व की आत्मा. ज्ञान का अंकुर नहीं होती है बुरे कर्मों में लिप्त स्वयं प्रस्फुटित होता है। है अगर कोईश्रद्धा है एक ऐसा विश्वास संसार चक्रव्यूह से निकलने की ओषधि हकीकत पेश करता है वह है सम्यग्दर्शन जीवन दर्शन की। तब होता है भीतर का द्वार खोल देता है। सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः । अन्तर्नयनों की रोशनी चमक उठती है। बिना दर्शन तो मुश्किल है, ज्ञान और चारित्र को पाना । निकिता केमिकल्स, २-२-५३. प्रथम माला, पान बाजार, सिकन्द्राबाद (आ.प्र.) Jain Education International For Personal & Private Use Only - rapew.jainelibrary.org,
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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