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________________ सम्यग्दर्शन : जीवन-व्यवहार ३३१ आदि की आवश्यकता नहीं होती। इस व्रत के पालन से पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ समाज में कामुकता के कारण कई जघन्य अपराध हिंसा, चोरी आदि भी समाप्त हो जाते हैं और सामाजिक पर्यावरण सुखद और शान्तिमय होता है। शाकाहार __ शाकाहार ही सम्यक् आहार है। शाकाहार जैनों का प्रमुख लक्षण, उनकी पहचान और जैन आचार-संहिता का महत्त्वपूर्ण अंग है। जैन-साहित्य में भक्ष्य-अभक्ष्य का जो विशद विवेचन है वह अद्वितीय है। बाईस प्रकार के जो अभक्ष्य बताये गये हैं उनमें त्रस जीवों की रक्षा के भाव के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य का भी लक्ष्य है, उदाहरणार्थ सड़े-गले अचार, अनाज का पिसा आटा आदि निर्धारित अवधि के पश्चात् नहीं लेना, मांसाहार का, पांच उदंबर फलों का निषेध आदि का विधान दोनों लक्ष्यों की पूर्ति करता है। अंडा भी मांसाहार है, क्योंकि वह कोशिका (Cell) है। आजकल अनिषेचित अंडे को शाकाहार कहा जा रहा है जो जीव-विज्ञान के अनुसार भी गलत है। माता का अंडा (ovum) और नर के शुक्राणु (Sperm) दोनों जीव ही हैं, इसीलिए दोनों के मिलन से जीव विशेष की सन्तति चलती है। दूध को पशु जनित (Animal-product) होने के कारण अंडे के समकक्ष रख दिया जाता है, जो ठीक नहीं है क्योंकि दूध में जीव की आधारभूत कोशिकाएं (Cells) नहीं होती। पशुपालन यदि समुचित ढंग से हो, पशुओं को स्नेह से भरपूर खाना दिया जावे तो यह सहज सहजीवन ही है। वस्तुतः पालतू पशुओं को जो अच्छा खान-पान दिया जाता है उससे उनके दूध की मात्रा में इतनी वृद्धि होती है कि वह पशुओं के अपने बच्चों की आवश्यकता से कहीं अधिक होती है। अब तो आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान भी मांसाहार को अनेक गंभीर रोगों का कारण मानता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से शाकाहार को उपयुक्त प्रतिपादित करता है। इसी कारण समृद्ध पश्चिमी देशों में शाकाहार की प्रवृत्ति बढ़ रही है। पहले मांसाहार के पक्ष में उसकी शाकाहार से अधिक पौष्टिकता की दलील दी जाती थी, वह वैज्ञानिक आधार पर भी अब खंडित हो गई है। शाकाहार की इतनी अधिक विविधता है कि उसके संतुलित चयन से उसकी पौष्टिकता मांसाहार से भी अधिक हो जाती है। मांसाहार में रेशा (Fibre) नहीं होने से वह सुपाच्य नहीं होता। प्रकृति में हाथी सर्वाधिक बलिष्ठ होता है और वह पूर्ण शाकाहारी होता है। पर्यावरण-संरक्षण की दृष्टि से शाकाहार ही उत्तम है। एक मांसाहारी शाकाहारी की तुलना में १० गुना अधिक खाता है और उसके लिए १० गुना अधिक भूमि की आवश्यकता होती है। मांसाहारी जिन पशुओं पर निर्भर होता है वे वनस्पति पर ही निर्भर होते हैं। पशु वनस्पति (शाकाहार) खाकर जितनी ऊर्जा (Calories) ग्रहण करता है उसका ९०% वह अपने हलन-चलन, पाचन, प्रक्रिया में व्यय कर देता है और १०% ही मांस के रूप में संचित कर पाता है और इस प्रकार मांसाहारी अप्रत्यक्ष रूप से (Indirectly) १० गुना वनस्पति (शाकाहार) ग्रहण करता है। अमरीका में मांसाहार के लिए प्रयुक्त पशुओं को जितनी मात्रा में मक्का आदि अनाज खिलाया जाता है वह समूचे विश्व की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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