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सम्यग्दर्शन और जीवन-व्यवहार
प्र रणजीत सिंह कमट श्रीयुत कूमट सा. का यह लेख द्रष्टाभाव में रहने की प्रेरणा देता है। उनके अनुसार राग-द्वेष रूप प्रतिक्रिया किए बिना द्रष्टाभाव से रहना सम्यग्दर्शन है। ऐसा सम्यग्दर्शन व्यक्ति को दु:खमुक्त बनाने में सक्षम है तथा जीवन को भी सरल एवं सार्थक करता है ।-सम्पादक
'सम्यग्दर्शन' मोक्षमार्ग का प्रथम चरण है। इसे रत्नत्रय में भी प्रथम स्थान प्राप्त है। सम्यग्दर्शन के महत्त्व पर पण्डित बनारसीदास ने कहा है
बनारसी कहे भैया भव्य सुनो मेरी सीख, कै हूं भांति कैसे हूं कै ऐसी काजू कीजिए। एकहू मुहरत मिथ्यात को विधूस होई, ग्यान को जगाइ अंस हंस खोजि लीजिए। वाही को विचार वाको ध्यान यहे कौतूहल, यौही भरि जनम परम रस पीजिए। तजि भव वास को बिलास सविकार रूप,
अंत करि मोहको अनंतकाल जीजिए॥२४॥ -समयसार नाटक, पृष्ठ ४३ यहां भव्य जीव को उपदेश दिया गया है कि कैसे ही कर ऐसा उपाय करो कि एक मुहूर्त के लिये ही मिथ्यात्व का नाश कर ज्ञान का अंश जागृत कर 'हंस' अर्थात् आत्म-तत्त्व को खोज लीजिए और उसी का विचार एवं ध्यान जीवनभर करके पुरमरस का पान कीजिए। मोह का नाश कर राग-द्वेषमय संसार में भटकना बंद करके सिद्धपद प्राप्त कीजिए।
एक अन्तर्मुहूर्त के मिथ्यात्व-नाश को भी मोक्ष मार्ग का अमोघ उपाय माना गया है तो जीवन में मिथ्यात्व का नाश हो, सम्यक् दर्शन आ जाये तो उस जीवन का तो कहना ही क्या? मोक्ष से पहले जीवन को और आज के वर्तमान को समझना आवश्यक है। क्या सम्यग्दर्शन हमें आज और वर्तमान में सुखी बनाता है या केवल भविष्य में मोक्ष की दिलासा ही देता है? क्या हम सम्यग्दर्शन से अपना जीवन व्यवहार सुधार सकते हैं? आज और अभी सुखी हो सकते हैं, या केवल सुख की आशा में ही जीने की कल्पना कर सकते हैं? यह जानने के लिये सम्यग्दर्शन तत्त्व को समझना होगा। सम्यग्दर्शन क्या है, और इसका जीवन-व्यवहार से क्या सम्बन्ध
सम्यक् का अर्थ दो तरह से किया जा सकता है। एक अर्थ में सम्पूर्ण रूप से देखने या जानने को सम्यक् दर्शन व सम्यक् ज्ञान कहते हैं। दूसरे अर्थ में सही रूप से देखने और जानने को सम्यक् दर्शन व सम्यक ज्ञान कहते हैं। दोनों अर्थों में कोई विरोध नहीं है। सत्य के अनेक पहलू होते हैं अतः सब दृष्टिकोणों से जानना व देखना
* आई.ए.एस., सेवानिवृत्त अध्यक्ष,राजस्व विभाग,राजस्थान सरकार
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