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जिनवाणी-विशेषाङ्क सेवन नहीं करता । कोई सेवन न करते हुए भी आसक्ति के कारण सेवन करता है । जैसे अतिथि रूप में आया कोई पुरुष विवाहादि कार्य में लगा रहने पर भी उस कार्य का स्वामी न होने से - उसमें लिप्त नहीं होता। अनासक्त व्यक्ति के साथ भी यही स्थिति है।" इसी बात को राजस्थानी के एक कवि ने कहा है -
सम्यग्दृष्टि जीवड़ा, करे कुटुम्ब प्रतिपाल।
अंतरगत न्यारो रहे, ज्यों धाय खिलावे बाल ।। अर्थात् जिस प्रकार धाय बच्चे को खिलाती-पिलाती है, उसका लालन-पालन करती है, फिर भी हर समय यह भाव संजोये रखती है कि यह मेरा पुत्र नहीं है, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव कुटुम्ब में रहता हुआ भी उससे अलग रहता है।
इस प्रकार का व्यक्ति कर्म से लिप्त नहीं होता। समयसार गाथा २१८-२१९ में कहा है - 'जिस प्रकार कीचड़ में पड़ा हुआ सोना, कीचड़ से लिप्त नहीं होता, उसे जंग नहीं लगता है, उसी प्रकार ज्ञानी संसार के पदार्थ-समूह से विरक्त होने के कारण कर्म करता हुआ भी कर्म से लिप्त नहीं होता। किन्तु जिस प्रकार लोहा कीचड़ में पड़ कर विकृत हो जाता है, उसे जंग लग जाता है, उसी प्रकार अज्ञानी जीव पदार्थों में राग-भाव रखने के कारण कर्म करते हुए विकृत हो जाता है, कर्म से लिप्त हो जाता
इस प्रकार हम देखते हैं कि सम्यग्दर्शन द्वारा मनुष्य के हृदय में आत्मा का प्रकाश झलकने लगता है, पर-पदार्थों के प्रति उसकी आसक्ति कम हो जाती है, जीवन जीने का सही उद्देश्य ज्ञात हो जाता है तथा मन, अपूर्व शान्ति व आनन्द का अनुभव करने लगता है।
देह से भिन्न अजर अमर आत्मा का बोध कराने वाली यह दृष्टि जीवन को सही मार्ग की ओर अग्रसर करती है और व्यक्ति बहिरात्मा से अन्तरात्मा बनने तथा आगे परमात्म-स्वरूप को प्राप्त करने में सफल हो जाता है।
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सम्यक्त्व-बैंक मुस्कुराती सुबह शाम को ढली होती है,जीवन की पीठ पर मौत लिखी होती है। बढ़ालो बढ़ा सकें धर्म मे कदम, क्यों कि साँसों की कोई गारंटी नही होती है । प्रभु का दरबार ही अनन्त सुख का टैंक है,अनन्त सुख के टैंक में सम्यक्त्व रूपी बैंक है। सम्यक्त्व रूपी बैंक में जो भी खाता खोलेगा। वो ही धर्म रूपी ब्याज कमा कर मोक्ष का द्वार खोलेगा। जो वस्तु को जलादे उसे आग कहते हैं,जो जीवन को जलादे उसे राग कहते हैं। जो जीवन को ऊँचा उठादे,उसे त्याग कहते हैं । जो मुक्ति तक पहुँचादे उसे वैराग कहते हैं। समता के बिना साधना नहीं होती । निर्मलता के बिना उपासना नहीं होती ॥ श्रद्धान करलो आत्म-तत्त्व सम्यक्त्व है । बिना श्रद्धा के कोई आराधना नहीं होती ॥
डा. वी.डी. जैन, दारोगा हाऊस हल्दियों का रास्ता, जयपुर-३
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