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जिनवाणी-विशेषाङ्क हैं, एक पैर नहीं। उसी प्रकार युक्ति पथ की मंजिल का ज्ञान मात्र भाषा नहीं दे सकती है, वरन् उसे दूसरा पैर गणित का भी चाहिए। आज के समस्त विज्ञान, कलाएं तथा तंत्र भाषा एवं गणित के प्रतीकों के आधार पर वृद्धिंगत हुए हैं। हमारी अगाध श्रद्धा मात्र यहाँ तक कोरी रह जाती है कि हमारे ग्रन्थों में कुछ है जो हम नहीं जानते हैं । जानने की प्रक्रिया भी हम नहीं जानते हैं और न ही उस गणित की गंभीरता को आधुनिक गणित के समक्ष जानने की प्रक्रिया में भाग ही लेना चाहते हैं। वह तत्त्व वस्तुतः सूक्ष्मतम है जो आज के टी.वी. या अणु शक्ति के गणित से भी अधिक गम्भीर एवं रुचिकर है। जैसे गणितीय प्रमाणों की घटक सामग्री के बिना हम यंत्र तंत्र, या मंत्र को सुधार नहीं सकते हैं, वैसे ही मुक्ति के गणितीय प्रमाणों की घटक सामग्री को समझे बिना हम श्रेणी नहीं चढ़ सकते हैं। गुणस्थान वस्तुतः वह नियंत्रण प्रणाली है जिसका द्रव्यश्रुत या भावश्रुत पूर्णतः गणितीय ही है। तराजू की यह तौल स्वर्ण
और हीरे-जवाहरातों की नहीं, वरन् अनन्त शक्ति रखने वाले, अणु शक्ति से भी परे, ज्ञानशक्ति, केवलज्ञान-शक्ति के घटकों, घटक राशियों की तौल होती है।
जैसे नदियों की, नालों की, पनालों की, झरनों की, बूंदों की धाराएँ असंख्य प्रकार की होती हैं, वैसे ही भावों की धाराएँ अनन्त प्रकार की होते हुए भी जैनाचार्यों ने उन्हें पांच प्रकार के भावों में अंकित कर दिया है। चार प्रकार के कर्म से जनित भावों को हम पहिचान भी लें, किन्तु पांचवाँ पारिणामिक भाव पहिचानकर अपनी भलाई के लिए उसमें से भव्यत्व एवं जीवत्व को पकड़ना सिखाने के लिए ही जैनाचार्यों ने बारंबार गणितीय प्रयोग किये। पांचवीं लब्धि तक हम पहुँचे या नहीं, और पहुँच कर तीन अंतर्मुहूर्तों तक प्रतिपल अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण की गणितीय पहिचान रखने वाली भाव धाराओं में हम बहे या नहीं ; यही जैनाचार्यों ने बतलाने का बारंबार प्रयास किया। प्रतिपल वह विशुद्धि इन अलग-अलग करणों में कितनी किस प्रकार बढ़ती है, कितनी-कितनी शक्ति से बढ़ती है यही तौल गणित के प्रमाणों द्वारा बतलाया गया है। फिर सम्यक् दृष्टि होने के पश्चात् श्रेणियों के माँडने का भी गणित है जो सातवें गुणस्थान के आगे का होने के साथ एक बार छोड़ भी दें, किन्तु चतुर्थ गुणस्थान, क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति तक के लिए द्रव्य या भाव श्रुत का यह गणित एक ऐसा अनमोल रत्न है जो मनुष्यभव प्राप्त होने पर भी न समझ पाना, समझने की ओर श्रद्धा न होना, वस्तुतः हमारे जैनाचार्यों द्वारा प्रबोधित ज्ञान की उपेक्षा ही करना
है।
___यह तो हुई उनके द्वारा प्रदत्त मोक्षमार्ग उपलब्धि हेतु देशना रूप गणितीय सम्यक् दृष्टि । अब हम उनकी सामान्य लोकोपकारी गणितीय सम्यक्दृष्टि को भी देखने का प्रयास करें। यह सुनिश्चित है कि गणितीय सम्यक् दृष्टि से गणितीय सम्यक् ज्ञान
और गणितीय सम्यक् चारित्र अविनाभावी रूप से अवश्यम्भावी होगा ही। आज विश्व की गहनतम समस्या है प्राणों को बचाने की, कारण कि पर्यावरण का इतनी जल्दी-जल्दी परिवर्तन, हजारों लाखों जीवों का जीना दूभर कर देगा। आज गम्भीरतम समस्या है पर्यावरण और यांत्रिक-तांत्रिक फैक्टरियों के नियंत्रण के नेतृत्व की, जो विश्वव्यापी हो, मात्र स्थानीय ही होकर न रह जाए। ओजोन की सतह भी कई स्थानों में नष्ट हो जाने से लोग उन देशों में त्वचा केंसर से बचने हेतु घर के बाहर बड़ी
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