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सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय-विवेचन
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गुरुदेव - हां-हां, क्यों नहीं । प्रिय आत्मन् ! ये आत्मलक्ष्यी धर्मचर्चाएं तो जहाँ साधक की साधना को पुष्ट करती हैं, वहीं कर्म - निर्जरा का माध्यम भी बनती हैं ।
(इस बीच इधर-उधर धर्म - आराधना में बैठे अन्य श्रावक-श्राविकाएं भी उस ज्ञान- चर्चा में सम्मिलित हो जाते हैं) विशाल - भंते! सम्यक्त्व किसे कहते हैं ?
गुरुदेव - विशाल ! समकित समझने से पूर्व उसका प्रतिपक्षी मिथ्यात्व समझना अति आवश्यक है । तत्त्वों के विपरीत श्रद्धा को मिथ्यादर्शन कहते हैं । जैसे जीव को अजीव श्रद्धना, अजीव को जीव श्रद्धना, धर्म को अधर्म श्रद्धना आदि १० बोलों की विपरीत श्रद्धा को मिथ्यात्व कहते हैं । वस्तु के यथार्थ स्वरूप के श्रद्धान को समकित कहते हैं । वह सम्यक्त्व व्यवहार व निश्चय की अपेक्षा से दो प्रकार का 1 व्यवहार में सुदेव, सुगुरु, सुधर्म पर श्रद्धा होना सम्यक् दर्शन है । निश्चय में आत्मा की अनुभूति अर्थात् जड़-चेतन का भेद - ज्ञान होना सम्यग्दर्शन है
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मनीष - गुरुदेव ! क्या सम्यक्त्व के और भी भेद किये गये हैं ? गुरुदेव - मुख्यतः तीन भेद बताये हैं- उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक |
(१) उपशम - जिस जीव ने सात ( अनंतानुबंधी चौक, दर्शनत्रिक) प्रकृतियों का उपशमन कर दिया, जीव के ऐसे परिणाम को उपशम समकित कहते हैं । इसमें विपाकोदय एवं प्रदेशोदय दोनों का अभाव रहता है और यह समकित प्रतिपाती है । इसकी स्थिति जघन्य-उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है ।
(२) क्षयोपशम - उपर्युक्त सात प्रकृतियों में से चार प्रकृति का क्षय, तीन का उपशम, पांच का क्षय दो का उपशम छह का क्षय एक का उपशम, इन तीन विकल्पों में से कोई भी विकल्प जीव का परिणाम भाव हो तो उसे क्षयोपशम समकित कहते हैं, इसमें सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृति का विपाकोदय एवं प्रदेशोदय बना रहता है । इसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट ६६ सागर झाझेरी है ।
(३) क्षायिक- उपर्युक्त सातों ही प्रकृति का जिसमें क्षय होता है जीव के ऐसे परिणाम को क्षायिक समकित कहते हैं । यह अप्रतिपाती होती है। इसकी स्थिति सादि अनंत
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इनके अतिरिक्त सास्वादन एवं वेदक को लेकर कुल पांच भेद माने गए हैं I (४) सास्वादन - उपशम समकित से गिरता हुआ जीव जब तक मिथ्यात्व की अवस्था में नहीं पहुंचता, इस बीच की अवस्था को सास्वादन समकित कहते हैं । जिसकी स्थिति जघन्य एक समय एवं उत्कृष्ट छह आवलिका की है।
(५) वेदक- सम्यक्त्व मोहनीय का वेदन जिसको रहता है उसे वेदक सम्यक्त्व कहते हैं ।
यह तीन प्रकार का होता है - १. उपशम २. क्षयोपशम और ३. क्षायिक । इनमें से उपशम एवं क्षायिक वेदक की स्थिति एक समय की है। क्षयोपशम वेदक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट ६६ सागर झाझेरी है ।
अनेक श्रोता - गुरुदेव ! सम्यक् दर्शन से क्या लाभ है और इसकी क्या महिमा है ?
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