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सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय-विवेचन
१४३ लगते हैं, उनके अनुयायी बन जाते हैं व अपना धर्म छोड़कर उनका ही प्रचार करने लगते हैं। :
ऐसा इसलिए होता है कि उन्हें जैन-धर्म के तत्त्वों का विशेष ज्ञान नहीं होता, जिससे उनकी श्रद्धा लुढकने वाले बिन पैदे के लोटे की तरह हो जाती है। यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो जैन धर्म में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने बड़े बड़े राजा-महाराजाओं को हिंसा छुड़वाकर धर्म मार्ग में लगाया। वर्तमान में कई महान्
आचार्य इस धरा पर मौजूद हैं जो अपनी प्रामाणिकता व धर्म-साधना के लिए विख्यात हैं। अतः हम जैन धर्म पर दृढ़ श्रद्धा रखें अपनी भक्ति को कुदेवों को अर्पित नहीं करे।
यहां प्रश्न उठता है कि सद्गुणों की प्रशंसा में भला दोष कैसा? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि गुणों के साथ दोषों पर भी विचार किया जाना चाहिए। किसी के गुण बताने के साथ-साथ उसके दोष भी बताने चाहिए ताकि व्यक्ति गुणावगुणों पर विचार कर सम्यक् निर्णय ले सकें। हमारे देव सब दोषों से रहित होते हैं अतः उनसे उत्तम कोई हो ही नहीं सकता।
(५) परपाषंडपरिचय सम्यक्त्व का पांचवा दोष है परपाषंड परिचय। मिथ्या-मतियों से सम्पर्क बढ़ाना, उनसे परिचय करना परपाषंड परिचय कहलाता है। कहते हैं संगति का असर मानव पर होता ही है। वह जैसी संगति में पड़ता है वह वैसा ही हो जाता है। सम्यक्त्व की प्राप्ति, वृद्धि व शुद्धि के लिए परमार्थ परिचय जितना आवश्यक है उतना ही परपाषंडी परिचय से दूर रहना भी आवश्यक है।
हम मिथ्यामतियों के सम्पर्क में रहेंगें तो धीरे-धीरे हमें उनके सिद्धान्त सही लगने लगेंगे। हम उनके देव-गुरुओं को ही अपना मानने लगेंगे, तथा वास्तविक धर्म को भूल जायेंगे। इसलिए जब तक सम्यक्त्व की दृढ़ता न हो तब तक परपाषंड परिचय त्याज्य है। हमें अपने धर्म पर दृढ़ श्रद्धा रखकर मिथ्यामतियों के संसर्ग से बचना चाहिए। सम्यक्त्व के पाँच भूषण
सम्यक्त्व के दोषों पर विचार करने के पश्चात् इसके भूषणों पर विचार किया जा रहा है। जैसे सहज सौन्दर्य युक्त शरीर सुन्दर वस्त्राभूषणों के धारण करने से निखर उठता है वैसे ही जिन कारणों से सम्यक्त्व चमकने लगता है वे सम्यक्त्व के भूषण कहलाते हैं । सम्यक्त्व के ५ भूषण निम्न प्रकार बताए गए हैं
(१) स्थिरता धर्म में स्थिर बने रहना स्थिरता भूषण है। जिनेन्द्र भगवान् ने जो मार्ग बताया है वही सत्य है। उसके अतिरिक्त दूसरे सब मार्ग मिथ्या हैं। धर्म में स्थिर रहने वालों से इतिहास भरा पड़ा है। इनमें कामदेव, सेठ सुदर्शन आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। इन्होंने मारणान्तिक कष्ट उपस्थित होने पर अपने धर्म को नहीं छोड़ा। ये कष्टों से जरा भी विचलित नहीं हुए और अन्त में जीत इन्हीं की हुई। हमें भी न केवल स्वयं दृढ़ रहना चाहिए बल्कि धर्म से डिगते हुए प्राणियों को भी समझाकर धर्म में पुनः स्थिर करना चाहिए।
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