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सम्यक्त्व के दूषण और भूषण
सम्यक्त्व के पाँच दूषण
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हमें किसी वस्तु के गुणों को जानने के साथ दोषों की जानकारी भी करनी चाहिए। दोषों को दूर करके ही हम शुद्ध स्वरूप को आत्मसात् कर सकते हैं सम्यक्त्व एक अनमोल रत्न है तथा मोक्ष का द्वार है। बिना सम्यग्दर्शन के कोई भी जीव मुक्त नहीं हो सकता । अतः सम्यक्त्व को मलीन करने वाले दोषों की जानकारी आवश्यक है ताकि हम उनसे बच सकें । यहाँ सम्यक्त्व के दोषों का वर्णन किया जा रहा है
x जम्बू कुमार
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(१) शंका - जिनेश्वरों के वचनों में शंका करने से सम्यक्त्व में मलीनता आती है । कई बार हम यथार्थ को नहीं समझने के कारण उसकी सत्यता पर सन्देह करने लगते हैं और यहीं से शंका का जन्म होता है ।
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संसार में अनेक ऐसी अदृश्य वस्तुएं हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष नहीं कर सकते । इनके अस्तित्व एवं स्वरूपादि का ज्ञान आप्त-वचनों से ही हो सकता है । जैसे किसी के शरीर में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो वह इलाज हेतु डॉक्टर के पास जाता है । उसे डॉक्टर की दवा पर विश्वास करना ही पड़ता है, चाहे डॉक्टर दवा के रूप में कुछ भी देवे। रोगी अगर डॉक्टर पर अविश्वास या शंका करके चलेगा तो वह ठीक नहीं हो सकता ।
हमारा ज्ञान सीमित है, हम प्रत्यक्ष वस्तु को भी पूर्ण रूप से नहीं जान सकते तो हमें भगवान् की वाणी पर शंका करने का क्या अधिकार है ? वैसे भी धार्मिक विषयों में व्यक्ति के स्वतंत्र विचारों का कोई महत्त्व नहीं होता फिर चाहे वह उच्च कोटि का विद्वान् ही क्यों न हो । यदि व्यक्ति की इच्छा - मान्यतानुसार ही दर्शन का रूप बनता चला जाएगा तो जितने व्यक्ति उतने ही दर्शन हो जायेंगें । निर्ग्रन्थ प्रवचन पर शंका रूपी राक्षसी के जन्म से ही मत - विभिन्नताएं बढ़ती हैं, उन्मार्ग की ओर प्रवृत्ति होती है। वर्तमान में ये बढ़ती प्रवृत्तियां जैन दर्शन के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं
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अतः हमें इस दोष से बचने का प्रयास करना चाहिए तथा 'तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं' 'जो जिनेश्वरों द्वारा प्ररूपित है वही सत्य व शंका रहित है' इस पर दृढ़ श्रद्धा रखनी चाहिए ।
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* लेखाकार, राजकीय मुद्रणालय, जयपुर एवं पूर्व छात्र श्री जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जयपुर
(२)
कांक्षा- व्यक्ति-विशेष, किसी भौतिक विशेषता अथवा प्रलोभनों से आकर्षित होकर पर- दर्शन को अपनाने की इच्छा करना कांक्षा दोष कहलाता है । यह तभी होता है जब हमारी श्रद्धा ढीली होती है। कभी-कभी भोगी एवं रागी व्यक्ति विशिष्ट गुणों के धारक हो सकते हैं अतः हम उनके गुणों से प्रभावित हो जाते हैं । उनकी बातों का असर हमारे ऊपर होने लगता है, हम उनको बड़ा मानने लगते हैं तथा
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