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________________ ८४ राजा पेट लेकर कुछ महत्तरिका बैठी बाई ओर दीक्षा का उपकरण लेकर प्रभु की धाई मां बैठी । 1 नन्दिवर्धन की आज्ञा से पालखी उठाई गई । उस समय शक्रेन्द्र दाहिनी भुजा को, इशानेन्द्र बायी भुजा को चमरेन्द्र दक्षिण ओर के नीचे की वाह को और बलेन्द्र उत्तर ओर के नीचे की बाह को उठाये हुए थे। इनके अतिरिक्त अन्य व्यन्तर, भुवनपति, ज्योतिष्क और वैमानिक देवो ने भी हाथ लगाया। उस समय देवों ने अकाश पुष्पवृष्टि की । दुंदुभी बजाई । भगवान की पालखी के आगे रत्न मय अष्टमंगल चलने लगे । जूलूस के आगे आगे भंभा मेरी मृदंग आदि बाजे बजने लगे। भगवान की पालखी के पीछे पीछे उग्रकुल भोग कुल, राज्यकुल और क्षज्ञियकुल के राजा महाराजा तथा सार्थवाह आदि देव देवियां तथा पुरुष चलने लगे उन पर श्वेत चमर बीजा जा रहे थे। हाथी घोडे रथ एवं पैदल सेना उनके साथ थी। उसके बाद स्वामी के आगे १०८ घोडे १०८ हाथी एवं १०८ रथ अगल बगल में चल रहे थे। इस प्रकार ऋद्धि सम्पदा के साथ भगवान की शिविका ज्ञात खण्डवन में अशोक वृक्ष के नीचे आई | भगवान पालखी से नीचे उतरे । तत्पश्चात् भगवान ने अपने समस्त वस्त्रालंकार उतार दिये । उस दिन हेमन्त ऋतु की मार्गशीर्ष कृष्णा १० रविवार का तीसरा प्रहर था भगवान को बेले की तपस्या थी । विजय मुहूर्त में भगवान ने पंचमुष्ठिलंचन किया । उस समय शक्रेन्द्रने महाराजके उनकेशों को एक वस्त्र में ग्रहण किये और उसे क्षीरसमुद्र में बहा दिये । भगवान ने णमो सिद्धाणं कह कर करेमि समाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि कहा । इस प्रकार उच्चारित करते ही शुभ अध्यवसायो के कारण चतुर्थ मनः पर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया । नन्दिवर्धन आदि बन्धु जनोने भगवान को वन्दन अत्यन्त दुःखी हृदय से विदा ली । 1 कर उस समय भगवान के कन्धे पर सौधर्मेन्द्र ने देवदूष्य वस्त्र रख दिया । भगवान श्रामण्य ग्रहण कर अपने भाई बन्धुओं से विदा ले ज्ञातखण्ड से आगे विहार कर गये । भगवान की इस समय तीस वर्ष की अवस्था थी । प्रथम वर्षाकाल : - दीक्षा ग्रहण करने के बाद भगवान ने निम्न कठोरतम प्रतिज्ञा की - बारह वर्ष तक जब तक कि मुझे केवलज्ञान नहीं होगा मै इस शरीर की सेवा सुश्रषा नही करूंगा और मनुष्य तिर्यंच एवं देवता सम्बन्धी जो भी कष्ट आएंगे उनकों समभाव पूर्वक सहन करूंगा । मन में किञ्चित् मात्र भी रंज नहीं आने दूंगा । इस प्रकार की कठोर प्रतिज्ञा कर भगवान ने एकाकी विहार कर दिजा । भगवान महावीर ज्ञातखण्ड उद्यान से विहार करके उस दिन शाम रहा तो कमर ग्राम आ पहुचे। वहां वे ध्यान में स्थिर हो गये । को जब एक मुहूर्त दिन शेष एक ग्वाला सारे दिन हल जोत कर संध्या के समय बैलों को साथ में लिये घर की ओर लौंट रहा था । वह भगवान को खडे देखकर अपने बैल उनके पास छोडकर बोला मैं गांव में तुम मेरे बैलों का ध्यान रखना यह कह कर वह गांव में गाय दुहने के लिए चला प्यास से पीडित होने के कारण चरते चरते बहुत दूर जंगल में निकल गये। जब भगवान के पास बैलों को नहीं पाया । उसने भगवान से पूछा आर्य ! मेरे बैल की ओर से प्रत्युत्तर नहीं मिलने पर उसने समझा कि उनको मालूम नहीं है । वह जंगल में बैलों को खोजने के लिए चला गया । बहुत खोजने पर भी जब बैल नहीं मिले तो वह वापस लोट आया । बैल भी चरते-फिरते पुनः भगवान के पास आकर खडे हो गये और चुगाली करने लगे। उसने भगवान के पास बैलों को खडे हुए देखा। बैलों को भगवान के पास देख वह अत्यन्त ऋ आकर बोला- अरे दुष्ट ! तेरा विचार मेरे बैलों को चुरा कर भागने का था Jain Education International W For Personal & Private Use Only जाता हूं तब तक गया। बैल भूस ग्वाला लौटा तो उसने कहा गये १ भगवान हुआ और भगवान के पास इसी लिए जानते हुए भी तू www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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