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सुनकर देवानन्दा पति को प्रणाम करके वापिस शयनकक्ष में लोट आई और शेष रात्रि को धर्मध्यान में बिताने लगी। गर्भ सुखपूर्वक बढने लगा। गर्भ के अनुकूल प्रभाव से देवानन्दा के शरीर की शोभा,कान्ति और लावण्य भी बढने लगा । एवं ऋषभदत्त की ऋद्धि यश तथा प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होने लगी । इस प्रकार गर्भ के ८२ दिन बीत गये ८३ वें दिन की ठीक मध्यरात्रि में देवानन्दा ने स्वप्न देखा कि मेरे स्वप्न त्रिशला क्षत्रियानी ने चुरा लिये हैं । " जिस समय देवानन्दा ने त्रिशला द्वारा किया गया अपने स्वप्नों का हरण देखा उसी समय त्रिशलारानी ने भी चौदह महास्वप्न देखे । जो पहले देवानन्दा ने देखे थे
स्वप्न हरण का मूल कारण यह था कि जब अवधिज्ञान से सौधर्मेन्द्र को भगवान के अवतरण की बात ज्ञात हुई तो उसे विचार आया कि तीर्थङ्कर. चक्रवर्ती, बलदेव एवं वासुदेव केवल क्षत्रियकुल में ही उत्पन्न होते हैं किन्तु आश्चर्य है कि भगवान का अवतरण ब्राह्मण कुल में हुआ है । तीर्थकर न कभी ब्राह्मण कलमें उत्पन्न हुए हैं और न होंगे । अतः इस अपवाद से बचाने के लिए भगवान को अन्य किसी क्षत्रियाणी के गर्भ में रखनाहोगा। उन्होंने उसी समय हरिणगमेषी देव को बुलाया और उसे भगवान को महाराणी त्रिशला के गर्भ में रखनेका आदेश दिया । इन्द्र का आदेश पाकर हरिणगमेषीदेव ने भगवान को देवानन्दा के गर्भ से निकाल कर आश्विनकृष्णा त्रयोदशी के दिन मध्यरात्रि में त्रिशला रानी के गर्भ में रख दिया और त्रिशला के गर्भ में रही हुई कन्या को देवानन्दा के गर्भ में रख दि । जब भगवान गर्भ में आये तब त्रिशला देवी ने १४ चौदह महास्वप्न देखे । महारानी जागृत हुई ।उसने अपने पति से स्वप्न का फल पूछा। महाराजा सिद्धार्थ ने अपनी मति के अनुसार स्वप्न का फल बताते हुए कहादेवी ! तुम महान् पुत्र को जन्म दोगी । दूसरे दिन स्वप्न पाठकों से स्वप्न का अर्थ कराया । उन्होंने गम्भीर विचार के साथ महारानी त्रिशला के गर्भ में लोकोत्तम लोकनाथ तीर्थङ्कर भगवान का जीव आया है । रानी ने जो चौदह महास्वप्न देखे हैं उनका संक्षिप्त फल इस प्रकार हैं
(१) चार दांत वाले हाथी को देखने से वह जीव चार प्रकार के धर्म को कहने वाला होगा । (२) ऋषभ को देखने से इस भरत क्षेत्र में बोधि-बीज का वपन करेगा।
(३) सिंह को देखने से कामदेव आदि उन्मत्त हाथियों से भम होते भव्य जीव रूप वनका रक्षण करेगा।
(४) लक्ष्मी को देखने से वार्षिकदान देकर तीर्थङ्कर-ऐश्वर्य को भोगेगा ।
) माला देखने से तीन भुवन के मस्तक पर धारण करने योग्य होगा ? (६) चन्द्र को देखने से भव्यजीव रूप चन्द्र-विकासी कमलों को विकसित करने वाला होगा । (७) सूर्य को देखने से महातेजस्वी होगा । (८) ध्वज को देखने से धर्मरूपी ध्वज को सारे संसार में लहराने वाला होगा । (९) कलश को देखने से धर्मरूपी प्रासाद के शिखर पर उनका आसन होगा । (१०) पद्मसरोवर को देखने से देवनिर्मित स्वर्ण कमल पर उनका विहार होगा । (११) समुद्र को देखने से केवलज्ञान रूपी रत्न का धारक होगा । (१२) विमान को देखने से वैमाणिक देवों से पूजित यानि सर्व गुणो से युक्त होगा। (१३) रत्न राशि को देखने से रत्न के गहनों से विभूषित होगा । (१४) निर्धूम अमि को देखने से भव्य प्राणिरूप सुवर्ण को शुद्ध करने वाला होगा ।
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