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________________ कठ बोला-राजकुमार ! धर्म का स्वरूप क्या है यह तुम नहीं जा सकते हो। मैं जो कर रहा है। वह ठीक हो कर रहा हूं और तुम जो मुझ पर हिंसा का आरोप लगाते हो यह तुम्हारी निरी मूर्खता ही है । श्रीपार्श्वकुमार ने कहा- तपस्वी ठहरो ? अभी बताये देता हूं कि तुम इस अज्ञान तप में कितनी बडी हिंसा कर रहे हो । श्रीपार्श्वकुमार ने उसी समय अपने आदमियों को धूनी में से लक्कड खींचनेकी आज्ञा दी । सेवकों ने धूनी में जलता हुआ एक बडा काष्ठ खींच लिया । श्रीपार्श्वकुमार ने लक्कड को चीर कर उसमें अध जले नाग के जोडे को बताया । कुमार ने "नमोक्कार' मंत्र सुनाकर नागराज को संथारा करवा दिया। उसके प्रभाव से नागराज वहां से मरकर भवनपति देवनिकाय में धरण नाम का इन्द्र हुआ और नागिनी मरकर उसकी पद्यावती नामकी देवी बनी । ___अर्धमृत सर्प को देखकर कठ अत्यन्त लज्जित हुआ । श्रीपार्श्वकुमार पर उसे अत्यन्त क्रोध आया कठ की प्रतिष्ठा में धक्का लग गया । लोग अब कठ की प्रशंसा के बजाय उसकी निंदा करने लगे। कुमार के विवेक एवं ज्ञान की प्रशंसा करने लगे । कुछ समय के बाद कठ मरकर अज्ञान तप के प्रभाव से मेघमाली नाम का देव बना । भगवान श्रीपार्श्वनाथ के संसार त्याग का समय निकट आ रहा था । लोकान्तिक देव आपकी सेवा में उपस्थित होकर निवेदन करने लगे-“हे भगवान् ! अब आप का धर्म तीर्थ प्रवर्तन करनेका सुअवसर आगया इतना कहकर और प्रणाम करके वे रवाना हो गये । इसके बाद प्रभु ने वर्षीदान दिया । वर्षीदान की समाप्ति के बाद इन्द्रादि देव आये और उन्होंने सुन्दर शिविका बनाई । उसका नाम विशाला था । सुन्दर वस्त्राभूषण पहन कर भगवान् शिविका पर आरूढ हुए । भगवान नगर के बाहर आश्रमपद नामक उद्यान में पधारे बहाँ पौषवदी एकादशी के दिन अनुराधा नक्षत्र में तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षा दि देवों ने भगवान का दीक्षा महोत्सव किया । । दीक्षा ग्रहण करते ही भगवान को मनः पर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया । तीसरे दिन कोकट गाँव में धन्य नामक गृहस्थ के घर परमान्न से पारणा किया । उस समय 'धन्य' गृहस्थ के पर देवों ने वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट किये । भगवान ने वहाँ से अन्यत्र विहार कर दिया । भगवान ग्रामानु ग्राम विचरण करते हुए एक वन में सूर्यास्त के समय ठहर गये । वहाँ तापसों का आश्रम था । भगवान एक जीर्ण कूप के समीप वृक्ष के नीचे खडे होकर ध्यान करने लगे। उस समय कठ तापस का जीव मेघमाली देव की दृष्टि भगवान पर पडी। तत्काल उसे अपना पूर्व का वैर याद आ गया उसने विभंग ज्ञान से अपना पूर्व भव देखलिया । अपने वैर का बदला लेने के लिये वह भगवान के पास आया सांप बिच्छू , शेर चीते हाथी आदि अनेक कर रूप बनाकर भगवान को कष्ट देने लगा । गर्जना तर्जना फूत्कार चीत्कारें कर भगवान को डराने लगा परन्तु पर्वत के समान स्थिर प्रभु जरा भी विचलित नही हुए । वे मेरू पर्वत की तरह अडोल और अकम्प रहे । जब इन उपद्रवों से भगवान विचलित नहीं हए तो उसने आकाश में भयंकर मेघ बनाये और अत्यन्त मूसलधार पानी बरसाने लगा । आकाश में काल जिह्वा के समान भयंकर विजली चमकाने लगा और कानों के पर्दो को फाडने वाली गर्जना करने लगा। ____ मूसलाधार वर्षां होने लगी । बडे-बडे ओले बरसने लगे। सर्वत्र जलही जल दिखलाई देने लगा । पानी बढते-बढते भगवान की कमर और छाती से भी आगे नाक तक जा पहुँचा तब धरणेन्द्र का आसन चलायमान हआ अपने आसन चलायमान होने का कारण जानकर वह तत्काल पद्मावती के साथ भगवान के पास आया। उसने सुवर्ण का कमल बनाया और भगवान को उस पर रख दिया । नाग का रूप बना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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