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________________ आई । उस दिन पौष शुक्ला एकादशी का दिन था । तीन दिन के उपवास कर भगवती मल्लीकुमारी ने प्रव्रज्या ग्रहण की । आपके साथ तीन सौ स्त्रियों ने भी दीक्षा धारण की आपके साथ नन्द, नन्दिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, अमरपति, अमरसेन और महासेन इन आठ इक्ष्वाकुवंशी राजकुमारों ने भी दीक्षा ग्रहण की देवों ने भगवती मल्ली का दीक्षा महोत्सव किया ।। दीक्षा लेने के बाद दिन के अन्तिम प्रहर में अशोक वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो गया देवों ने उनका कैवल्य उत्सव किया । पूर्वोक्त जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने भी भगवती मल्ली के पास प्रव्रज्या ग्रहण की । चौदह पूर्व का अध्ययन किया और सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त किया । - भगवती मल्लीनाथ सहस्राम्र उद्यान से निकलकर बाहर जनपद में विहार करने लगे। भगवती मल्लीनाथ के अट्ठाईस गण और भिषक आदि अट्ठाईस गणधर थे । ४०००० चालीस हजार साधु और बन्धुमती आदि ५५० ० ० पचपन हजार साध्वियाँ थी । इनके श्रमणसंघ में ६१४छ सौ चौदह पूर्वधर, (त्रिषष्टी के अनुसार ६६८), २००० दो हजार अवधिज्ञानी (त्रिषष्टी के अनुसार २२००), ३२०० बत्तीस सौ केवलज्ञानी (त्रिषष्टी के अनुसार २९००), ८०० आठ सौ मनः पर्ययज्ञानी, (त्रिषष्टी के अनुसार १७५०) १४०० चवद सो बादलब्धिवाले २००० दो हजार अनुत्तरोपपातिक (त्रिषष्टी के अनुसार-१८३०००) १८४००० एक लाख चौरासी हजार श्रावक, एवं ३६५००० तोन लाख पैंसठ हजार श्राविकाएं थी। (त्रिषष्टी के अनुसार ३७००००) ___भगवान मल्ली कुमारी के तीर्थ में दो प्रकार की अंतकृत भूमि हुई-एक युगान्तर भूमि और दूसरी पर्यायान्त कर भूमि । इनमें से शिष्य प्रशिष्य आदि बीस पुरुषों रूप युगों तक अर्थात् बीसवें पाट तक युगान्तर भूमि हुई अर्थात् बीस पाट तक साधुओं ने मुक्ति प्राप्त की । बीसवे पाट के बाद उनके तीर्थ में किसी ने भी मोक्ष प्राप्त नहीं किया और दो वर्ष का पर्याय होने पर अर्थात् भगवान मल्ली के केवलज्ञान प्राप्ति के दो वर्ष बाद पर्यायान्ततर भूमि हुई । भव पर्याय का अन्त करनेवाले साधु हुए । इससे पहले कोई जीव मोक्ष नहीं गया । ____ मल्ली अरिहंत २५ धनुष उंचे थे । उनके शरीर का वर्ण प्रियंगु के समान था समचतुरस्त्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच संहनन था । वे मध्यदेश में सुख पूर्वक विचरकर सम्मेत शिखर पर आये और पादोपगमन अनशन अंगीकार किया । ___ मल्ली अरिहंत एक सौ वर्ष गृहवास में रहे । सौ वर्ष कम पचपन हजार वर्ष केवलीपर्याय पालकर कुल पचपन हजार वर्षकी आयु में चैत्र शुक्ला चौथ के दिन भरणी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का शुभ योग होने पर [त्रिषष्टी श० च० के अनुसार फाल्गुन शुक्ला द्वादशी के दिन] अर्ध रात्रि के समय आभ्यंतर परिषद् की पांचसौ साध्वयों के साथ एवं बाह्य परिषद् के पांचसौ साधुओं के साथ निर्जल एक मास के अनशन पूर्वक दोनों हाथ लम्बे कर वेदनीय, आयु नाम और गोत्र कर्म के क्षीण होने पर सिद्ध हुए । ___ इन्द्रादि देवों ने भगवान का निर्वाण उत्सव मनाया । भगवान अरहनाथ के निर्वाण के वाद कोटि हजार वर्ष के बीतने पर मल्ली अरहंत ने निर्वाण प्राप्त किया । १९ वें तीर्थङ्कर का स्त्री पर्याय में जन्म होना इस युग के दश आश्चर्यो में से एक आश्चर्य माना गया है। २०. भगवान श्रीमुनिसुव्रत स्वामी जम्बूद्वीप के अपरविदेह में भरतनामक विजय में चंपा नाम की नगरी थी। वहां सुरश्रेष्ठ नाम का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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