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________________ चाहिए । भगवती मल्लीकुमारी की आज्ञा पाकर शिल्पकारों ने मोहनगृह बनाया और उसमें मल्ली कुमारी की सुन्दर प्रतिमा बनाई । . अब मल्ली कुमारी प्रतिदिन अपने भोजन का एक कवल प्रतिमा के मस्तक का ढक्कन खोलकर 'उस में डालती थी और पुनः उसे ढक देती थी। अन्न के सड़ने से उस प्रतिमा के भीतर अत्यन्त दुसह्य दुर्गन्ध पैदा हो गई थी। मल्लीकमारी का प्रति दिन यही काम चलता रहा । ... उस समय कोशल जनपद में साकेत नाम का नगर था । वहां इक्ष्वाकु वंश के प्रतिबुद्धि नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम पद्मावती था। राजा के प्रधान मंन्त्री का नाम सुबुद्धि था । वह राजनीति में कुशल एवं राज्य का शुभचिन्तक था । एक बार पद्मावती देवी का नाग पूजन का उत्सव आया । महारानी पद्मावती ने राजा प्रतिबुद्धि से निवेदन किया-स्वामी ? कल नागपूजा का दिन है। आप की इच्छा से उसे बडे धामधम से मनाना चाहती हैं। उस में आप की उपस्थिति भी अनिवार्य है । राजा ने पद्मावती देवी की प्रार्थना स्वीकार की । राजा ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा-कल मैरे साथ महारानी पद्मावती नागपूजा करेगी अतः जल और स्थल में उत्पन्न होने वाले पांच वर्ण के पुष्यों को विविध प्रकार से सजाकर एक विशाल पुष्प मण्डप बनाओं । उस में फूलों के अनेक प्रकार के हंस. मृग, मयूर, क्रोंच आदि पक्षी एवं वन लता आदि के विविधप्रकार-चित्रों को बनाया जाए । उस पुष्प मण्डप के बीच सुगन्धित पदार्थ रखो एवं उसमें श्रीदामकाण्ड (पुष्पमालाएं) लटकाओ।" सेवकों ने माली से जाकरा महाराजा की उक्त आज्ञा कहीं । मालियों ने महाराजा की आज्ञानुसार वैसा ही किया । प्रातः महाराजा एवं महारानी ने स्नान किया एवं सुन्दर वस्त्रालंकारों से बिभूषित हो सुबुद्धि प्रधान के साथ हाथी पर बैठकर नागगृह आये ।वहां पूजा आदि से निवृत्त होकर वे पुष्प मण्डल में आये और श्रीदामकाण्ड की अपूर्व रचना का निरीक्षण करने लगे । कलात्मक पुष्पमण्डप की रचना को देख कर महाराजा अत्यन्त आश्चर्य चकित बुए । अमात्य को बुलाकर महाराज प्रतिबुद्धि कहने लगे-मंत्री ! तुम मेरे मंत्री और दूत के रूप में अनेक ग्राम नगरों में घूमे हो । राजा महाराजाओं के महलों में मी गये हो । कहो, आज तुमने पद्मावतीदेवी का जैसा श्रीदामकाण्ड देखा वैसा अन्यत्र भी कहीं देखा है ? सबद्धि बोला-स्वामी ! एक दिन आपके दूत के रूप में मैं मिथिला नगरी गया था । वहां विदेहराजा कुम्भ की पुत्री मल्लीकुमारी की जन्मगांठ के महोत्सव के समय मैंने एक दिव्य श्रीदामकाण्ड' देखा था । उस दिन मैने पहले पहल जो श्रीदामकाण्ड देखा। पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड उसके लाखवें भाग की भी बराबरी नहीं कर सकता । महाराज ने पूछा- “वह विदेह राजकन्या मल्लीकुमारी रूप में कैसी है ? मंत्री ने कहा- स्वामी ! विदेहराजा की श्रेष्ठ कन्या मल्लीकुमारी सुप्रतिष्ठित कुर्मोन्नत ( कछुए के समान उन्नत ) एवं सुन्दर चरणवाली है । वह अनुपम सुन्दरी है । उसका लावन्य अवर्णनीय है । तीनों लोक में भी उसके सौंदर्य की तुलना में अन्य कोई स्त्री नहीं है । __मंत्री के मुख से मल्लीकुमारी के रूप की प्रशंसा सुनकर महाराजा प्रतिबुद्ध बड़े प्रसन्न हुए और उसी क्षण दूत को बुलाकर कहने लगे "तम मिथिला राजधानी जाओ। वहाँ कम्भराजा की पत्री एवं प्रभावती देवी की आत्मजा और विदेह की श्रेष्ठतम राजकन्या मल्लीकुमारी की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो । यदि इसके लिए मेरा समस्त राज्य भी देना पडे तो स्वीकार कर लेना ।” महाराजा की आज्ञा प्राप्त कर दूत कुछ चुने दुए सुभटों को साथ में ले रथपर आरूढ हुआ और विदेह जनपद की राजधानी मिथिला की ओर चल पड़ा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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