________________
४२
१६ भगवान श्रीशान्तिनाथः- (दसवां और ग्यारहवाँ पूर्व भव)
जम्बूद्वीप के महाविदह के पुष्कलावती विजय में पुण्डरीकिणी नाम की नगरी थी। वहां धनरथ नामके राजा राज्य करते थे । उनके दो रानियां थी । एक का नाम प्रीयमती और दूसरी का नाम मनोरमा था । अवेयक का आयु पूर्ण कर वज्रायुध का जीव महारानी प्रीयमती के उदर में मेघ का स्वप्न सूचित कर उत्पन्न हुआ । जन्मने पर बालक का नाम 'मेघरथ' रखा । सहस्त्रायुध का जीव भी देवलोक से चव कर मनोरमा के उदर में आया । जन्म लेने पर उसका नाम दृढरथ रखा गया । दोनों बालक युवा हुए।
सुमन्दिरपुर के महाराज निहत शत्रु की तीन पुत्रियां थी उनमें प्रियमित्रा और मनोरमा का विवाह युवराज मेघरथ के साथ हुआ । एवं छोटी राजकुमारी सुमति का विवाह दृढरथ के साथ संपन्न हुआ । दोनो राजकुमार सुखपूर्वक कालयापन करने लगे ।
कालान्तर में राजकुमार मेघरथ की रानी प्रियमित्रा ने एक पुत्र को जन्मदिया, उसका नाम नन्दिषेण रखा गया । मनोरमा ने भी भेघसेन नामक पुत्र को जन्म दिया । राजकुमार दृढरथ की पत्नी ने भी एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम रथसेन रखा गथा ।
कुछ काल के बाद लोकान्तिक देवो ने आकर महाराजा धनरथ से निवेदन किया-"स्वामिन् । अब आप के धर्मप्रवर्तन का समय आ गया है । कृपा कर लोक हित के लिए आप प्रव्रज्या ग्रहण करें"।
महारज धनरथ तो तीन ज्ञान के धनी और संसार से विरक्त थे ही । संयम का योग्य अवसर भी आ गया था । अतएव महराज ने युवराज मेघरथ को राज्य भार सौंपा और राजकुमार दृढरथ को युवराज पद प्रदान कर वर्षीदान दिया और संसार छोड कर दीक्षा ग्रहण की । कठोर तप कर केवलज्ञान प्राप्त किया और चार तीर्थ की स्थापना की ।।
मेघरथ राजा न्याय और नीति से राज्य संचालन करने लगे । उनके राज्य में समस्त प्रजा सुख पूर्वक रहती थी महाराजा स्वयं धार्मिक होने से प्रजा में भी धार्मिक वातावरण फैला हुआ था ।
एक दिन महाराजा मेघरथ पौषधशाला में पौषध कर रहे थे कि सहसा एक भयभीत कबूतर महाराजा मेघरथ की गोद में आकर बैठ गया । कबूतर घबराया हुआ था । और भय से कांप रहा था। कांपता हुआ वह मनुष्य को बोली में बोला-महाराज मेरी रक्षाकरो मुझे बचावो महाराजा मेघरथ ने अत्यन्त प्रेम से उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा कबूतर ? तुम्हें डरने की जरूरत नही है । मेरे रहते तेरा कोई बाल भी वांका नही कर सकता । तुम निर्भय होकर रहो । इतने में एक बाज आया और मानव बोली में बोला -राजन् ! यह कबूतर मेरा भक्ष्य है । मै कभी का भूखा हूँ । अतः इस कबूतर को आप लौटा दें मैं इसे खाकर अपनी भूख शान्त करना जाहता हूँ।
मेघरथ ने कहा-बाजः तुम कबूतर के सिवाय जो चाहो मांग सकते हो । यह कबूतर अब मेरी शरण में आगया है । मैने इसे प्राण रक्षा का आश्वासन दे दिया है, अतः अब किसी भी स्थिति में यह कबूतर तेरा भक्ष्य नहीं बन सकता ।
बाज बोला-नराधिपः आप कबूतर की रक्षा करते हैं तो भला मेरी भी रक्षा कीजिये । मुझे भूख से तडफते हुए मरने से बचाईए प्राणी जवतक क्षुधातुर रहता है तब तक उसे धर्माधर्मका विचार कभी नहीं आता । क्षुधा की शान्ति के बाद ही मैं आपकी धर्म की बाते सुनूगा । प्रथम मेरा भक्ष्य मुझे दीजिये । मैं मांसाहारी हूँ । अतः मांस खाकर ही मैं तृप्त हो सकता हूँ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org