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संघों का डेप्युटेशन विरमगांम पहुंचा और पूज्यश्री से अहमदाबाद पधारने की नम्र प्रार्थना करने लगा । अहमदाबाद संघ की ओर से श्रीमान् भोगीलाल छगनलालभाई, सेठ श्री शांतिलाल आत्मारामभाई ईश्वरलाल - भाई पोपटलालभाई सेठ जोसिंग भाई, तथा बरडिया सेठ श्री मुलचन्दजी प्रेमचन्दभाई माणेकचंदभाई आदि सज्जन थे । उपरोक्तमहानुभावों ने पूज्यश्री से अत्यन्त निष्टापूर्वक अहमदाबाद पधारने की प्रार्थना की । विरमगांव का संघ भी यह पूनित अवसर अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहता था । वह भी प्रार्थना करने लगा कि पूज्यश्री विरमगांम में स्थायी रूप से बिराजकर यहीं शास्त्रों का कार्य पूर्ण करें। अहमदाबाद श्री संघ का अत्याग्रह था कि पूज्यश्री द्वारा समाज के लिए आगम लेखन का कार्य हमारे यहां हो । क्योंकि आगम प्रकाशन की समस्त सुविधा जैसी अहमदाबाद शहर में हैं वैसी अन्यत्र मिलना दुर्लभ है । आचार्यश्री ने गम्भीरतापूर्वक विचार कर अहमदाबाद के श्रीसंघ की विनंती पर सम्पूर्ण विचार किया । अन्त में द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव आदि दृष्टियों को ध्यान में रखकर आपने अहमदाबाद पधारने की स्वीकृति फरमाई । अहमदाबाद संघ में प्रसन्नता छा गई । इस अवसर पर अहमदावाद के संघ ने शास्त्रलेखन के कार्य को सफल बनाने वाले पण्डित को दुशाले आदि देकर सम्मानित किये । पूज्यश्री ने अहमदाबाद की ओर अपनी शिष्य मण्डली के साथ विहार किया । विरमगांम के व्यक्तियों ने अश्रूपूर्ण नयनों से आपको विदा किया और पुनः क्षेत्र फरसने का निवेदन किया ।
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पूज्यश्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ साणन्द पधारे । साणन्द श्रीसंघ ने खूब सेवा भक्ति की । साणन्द से सरखेज होते हुए आप पालडी सेठ पोपटलाल मोहनलालभाई के बंगले पर पधारे। उस समय दरियापुरी सम्प्रदाय के पूज्य आचार्यश्री ईश्वरलालजी म० सा० शाहपुर उपाश्रय में बिराज रहे थे । उनकी यह हार्दिक भावना थी कि पूज्यश्री घासीलालजी महाराज मेरे पास रहकर आगम लेखन का कार्य करें । पूज्यश्री की भी यही इच्छा थी । पूज्यश्री ईश्वरलालजी महाराज सा. की इच्छानुसार आप शाहपुर पधारे । दोनों आचार्य का मिलन बडा स्नेह पूर्ण था जैसे चंद्र सूर्य का मिलन हो । कुछ दिन शाहपुर में बिराजने के बाद पूज्यश्री घासीलालजी महाराज ने अपना कार्य क्षेत्र सरसपुर को चुना । सरसपुर के श्री संघ की भी यही इच्छा थी कि पूज्यश्री सरसपुर उपाश्रय में बिराजकर आगमलेखन का कार्य पूरा करें । सरसपुर संघ की उत्कृष्ट भावना से प्रभावित होकर पूज्य श्रीइश्वरलालजी म. के आर्शिवाद व मांगलिक लेकर आचार्य श्री सरसपुर पधारे ।
सरसपुर में बिराजकर आप शास्त्रलेखन का कार्य करने लगे ।
वि० सं. २० १४-से वि० सं २०२८ तक के १६ सोलह चातुर्मास आपने सरसपुर ( अहमदाबाद ) में बिराजे । इधर मलाड श्रीसंघ के अत्याग्रह से पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी म० सा को पूज्यश्री की मला चातुर्मास करने की आज्ञा मिली । पूज्य गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर जिस दिन पूज्यश्री सरसपुर पधारे उसी दिन शायं काल के समय मलाड (मुंबई) की ओर बिहार कर दिया। मलाडका दिव्य चातुर्मास कर वापिस पूज्यश्री की सेवा में पधार गये ।
आचार्य प्रवर सतत अप्रमत्तभाव से शास्त्रलेखन एवं साहित्य निर्माण के कार्य में जुट गये । तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज भी प्रत्येक चातुर्मास में लम्बी लम्बी तपश्चर्याएं करने लगे । तपश्चर्या की समाप्ति पर कई बार अहमदाबाद में समस्त कसाईखाने बन्द रहे थे । त्याग प्रत्याख्यान सामायिक, पौषध, उपवास संख्यातीत हुए । पूज्यश्री के विराजने से सरसपुर दर्शनार्थियों के लिए यात्रा धाम बन गया था । सन्तों और tara विविध धार्मिक प्रवृत्तियों में धर्म प्रभावना के आयोजनों में चातुर्मास काल एवं शेष काल पूर्ण होने लगा । राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब सिन्ध गुजरात, मध्यप्रदेश, बंगाल आदि स्थानों से सतत
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