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________________ ४२१ चातुर्मास सानन्द सम्पन्न हुआ। यहां दरियापुरी सम्प्रदाय की पूज्य महासतीजी श्रीइच्छाबाई ठाना २ से विराज मान थी। आप गत तीस वर्ष से छठ छठ की तपश्चर्या कर रही है। विरमगांव में दीक्षा समारोह: ____ यहां के श्रीमान शाह भाईचन्दभाई चतुरभाई की सुपुत्री वैराग्यवति बा० व्हेन वसुमती की मागशीर्ष शुक्ला पंचमी को बड़े समारोह के साथ दीक्षा सम्पन्न हुई । दोक्षा के अवसर पर परम श्रद्धेय आचार्य श्री घासीलालजी म. सा. व उनके शिष्य प. रत्न मुनि श्री कन्हैयालालजी म० ठाना ६ तथाः श्री जसुबाई स्वामी बा० ब्र० म. स. श्री शारदाबाई स्वामी ठा ४, दरियापुरी सम्प्रदाय की महासतीजी श्री ईच्छाबाई ठा २, पू० आन न्दी बाई ठाना २ से बिराजमान थी। दीक्षा विधि पं. मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज ने करवाई। विरमगांव के लिए यह दीक्षा महोत्सव ऐतिहासिक रहा । पूज्य श्री विरमगाँव में करीब एक वर्ष विराजे और शास्त्र लेखन का कार्य करते रहे। यहां के सेठ मणीलालभाई वकील श्री वाडीलालभाई सेठनागरदास भाई आदि सर्व श्री संघ बडाहि सेवाभावी और धर्मानुरागी है । उस समय साणन्द में पूज्य महासतीजी श्री शारदाबाई स्वामी के समीप शाह खेमचन्दभाई नरसिंह भाई (नानाचन्द शान्तिदास के कुटुम्ब की सुपुत्री बालब्रह्मचारी कान्ताबेन (वय २०) की भागवती दीक्षा होने वाली थी। ईस शुभ प्रसंग पर पू० आचार्य श्री घासीलालजी महाराज सा० से प्रार्थना की गई थी कि आप श्री अवश्य दीक्षा समारोह उपर पधारें । किन्तु शास्त्र लेखन कार्य होने से आपने अपने प्रिय शिष्य पं. मुनी श्री कन्हैयालालजी म० ठाना २ को भेजे । गुरुदेव की आज्ञा से पं. मुनीश्री साणन्द पधारे साणन्द में बडे समारोह के साथ बा. ब्र. कान्ताबेन की दीक्षा सम्पन्न हुई। साणन्द में दीक्षा देकर पं. मुनिश्री अहमदाबाद संघ के अत्याग्रह से अहमदाबाद पधारे । अहमदाबाद दो मास तक बिराजकर अनेक क्षेत्रों को पावन करते हुए आप पुनः पूज्यश्री की सेवा में विरमगाम पधार गये। पू० महासतीजी श्री ताराबाई स्वामी दरियापुर संप्रदाय की एक महान विदुषी साध्वी रत्न है । जैन की आप पूर्ण मर्मज्ञ है। त्याग और तप की साक्षात मति है। वो उस समय गीरधरनगर में बिराजमान थी । उनके पास अहमदावाद में दीक्षा होने वाली थी। पू० महासतीजी की भावना थी कि इस शुभ प्रसंग पर पूज्य आचार्य श्रीघासीलालजी म. सा. पधारे और दीक्षा उनके करकमलों से हों। गीरधरनगर संघ के आगेवान सेठ रमणलालभाई आदि संघ के प्रमुख व्यक्तियों का एक डेप्युटेशन विरमगांम गया और पूज्य आचार्यश्री को अहमदाबाद पधारने की सनम्र प्रार्थना की महासतीजी की प्रार्थना को लक्ष में रखकर आचार्य श्री ने अपने पट्टशिष्य पं. रत्नमुनिश्री कन्हैयालालजी म. सा. को अहमदाबाद की ओर बिहार करवाया। अहमदाबाद में पं. मुनिश्री के पधारने के बाद दीक्षा समारोह बडे हि उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। उस समय पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी म. सा. ने अहमदाबाद के सर्व सघों को प्रेरणा दी कि पूज्यश्री का शास्त्र लेखन कार्य अहमदाबाद में हो । और साथमें पूज्य आचार्य श्री को किस स्थल में रहने से संयम कि मर्यादा के साथ सुख शांति से कार्य हो सके एसा निर्मल स्थल की तपास में थे। इधर पूज्य आचार्य श्री ईश्वरलालजी म. बडे विद्ववान और मर्मज्ञ अने महान उदार थे । उनका पं. मुनि श्री के प्रति बडा स्नेह और पूर्ण कृपा थी। उन्होंने फरमायाकि कन्हैयामुनि मेरी आज्ञा है कि पूज्य म. को अहमदाबाद लाओ और सरसपुर का स्थान बडा अच्छा है। वहां रह कर शास्त्र कार्य सम्पूर्ण करें। पुज्यश्री ने सेठ भोगीलालभाई को बुलाये और कहा कि देख यह महान जवाबदारी तेरे ऊपर है । आचार्य श्री को अपने यहां बुलाते हैं तो उन्हें राखजानना । सम्पूर्ण कार्य अपने वहां ही पूर्ण हो एसो मेरी ईच्छा है। में श्री संघ को आज्ञा देता हूँ । उसके बाद पं. मुनिश्री से प्रेरणा लेकर अहमदाबाद के सर्व श्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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