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________________ ४१३ संघ के नगर सेठ श्री जमनादासभाई सेठ मदनलालभाई खाँडवाले, श्रीकाकुभाईसहेजपाल, श्री जमना दासभाई, दिक्षार्थिनी वैराग्यवति बहन श्रीविजयाबहन, श्रीशारदाबहन, तथा श्रीजयाबहन, श्रीपानकुंवरबहन आदि श्रीसंघ वेरावल ने धर्म ध्यान, ज्ञान, सेवा आदि धार्मिक प्रवृत्ति में आगेवान होकर महान लाभ लिया । वि. सं. २००७ का ४९ वां चातुर्मास जेतपुर में 1 1 ने वेरावल से चोरवाड़, सोरठ, वंथली धोराजो आदि गांवों में धर्म प्रचार करते हुए पूज्य श्री ठाना ४ से जेतपुर चातुर्मासार्थ पधारे। आप के आगमन से स्थानीय संघ अत्यानन्द छा गया । यहाँ स्थानक वासी समाज के काफी घर हैं । आर्थिक दृष्टि से सामान्य होते हुए भी धार्मिक दृष्टि से यहां के लोग समृद्ध । पूज्य श्री के पदार्पण से सारा नगर प्रसन्न था । प्रथम पं. रत्न मुनि श्री कन्हैयालालजी - म० के बाद में पूज्य श्री के व्याख्यान इतने प्रभावशाली होते थे कि गांव के सभी वर्ग व्याख्यान श्रवण कर ने के लिए निर्धारित समय के पूर्व ही अपना अपना आसन जमा लेते थे । आस पास के गांव के हजारों लोग दर्शनार्थ आते थे और पूज्य श्री का प्रवचन सुनकर अपने आप को धन्य मानते थे । सामायिक प्रतिक्रमण दया पौषध और जीवदया के कार्यों के साथ साथ तपश्चर्या भी खूब होने लगी । चातुर्मास के बीच तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराजने दोर्घ तपश्चर्या प्रारम्भ कर दी । तपस्वीजी की तपस्या पर अनेक छोटे बडे श्रावक श्राविकाओं ने यथा शक्ति त्याग प्रत्याख्यान दया पौषध उपवासादि तपस्याएँ प्रारम्भ कर दी। तपस्वीजी की तपस्या के समय स्थानीय श्रावक संघ के धार्मिक उत्साह को देखकर आगन्तुक सज्जन बडे प्रभावित हुए। और श्रावक संघ की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे । पूज्य श्री की वाणी का चमत्कारतपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज सा. ९२ दिन की तपस्या की । तपस्या की समाप्ति के प्रथम दिन स्थानीय श्रावक संघ ने सर्वत्र इस दिन को सफल बनाने की सुचना पत्र पत्रिकाओं द्वारा सर्वत्र भेजी गई । करीब हजार गांवों के श्रावक संघों ने पूज्यश्री के द्वारा भेजे गये सन्देश को बड़ी श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया । सर्वत्र अगते पलवाये गये । उस दिन अपने अपने गांव वालों ने यथाशक्ति त्याग व्रत प्रत्याख्यान ग्रहण किये । तपस्याऐं की । और हजारों मूक प्राणियों को अभयदान दिया गया । स्थानीय संघ ने उस दिन सारा बाजार बन्द रखा । पूज्यश्री ने उसदिन गाँव वालों को २५० प्रतिक्रमण करने का आदेश दिया । सभी लोगों ने पूज्यश्री के आदेश को बड़ी श्रद्धा के साथ स्वीकार किया । इस में जेतपूर श्रीसंघ के आगे वान सेठ श्रीनाथालालभाई झवेरचन्द कामदार तथा कानसभाई जीवराजभाई कोठारी ने सर्वत्र प्रयत्न किया । आचार्यश्री के आदेश से प्रतिक्रमण के समय जैन समाज के सभी श्रावक प्रतिक्रमण करने के लिए पूज्यश्री की सेवा में पहुँच गये । यह दृष्य बडा आदर्श था । धर्म का प्रभाव अचिंत्य होता है । धर्म से निरत व्यक्तियों की बड़ी बड़ी आपत्तियां भी नष्ट हो जाती है । इस आदर्श प्रतिक्रमण का जनता पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ा । लोगों में धर्म के प्रति खूब श्रद्धा बढ़ी । तपस्या का पारणा शान्ति पूर्वक हुआ । सभी दृष्टि से यह चातुर्मास बडा सफल रहा। आस पास के क्षेत्रों को फरसने की अनेक विनंतियां चातुर्मास के बीच आने लगी । चातुर्मास समाप्ति के बाद भी पूज्यश्री शास्त्रलेखन के लिए एवं शारीरिक कारण वश छ महिने तक यहिं बिराजे । ईस प्रकार १० मास तक जेतपुर संघ को अमृतमय वाणी का लाभ देकर आपने अपनी सन्त मण्डलो के साथ विहार कर दिया । हजारों लोगों ने आंसू भीने नेत्रों से पूज्यश्री को विदा दी और पुनः पूज्यश्री से क्षेत्र को पावन करने की आग्रह भरी प्रार्थना की । जेतपुर से विहार कर पूज्य श्री ने जेतलसर की ओर विहार किया । जेतलसर में करीब जैनों के दस बार घर हैं । बडे धर्म प्रेमी हैं । महाराज श्री के पधारने पर ईन्होंने खूब धर्म ध्यान किया । व्याख्यान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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