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________________ का नेतृत्व देकर जूनागढ में प्रवेश कराया । आगे प्रजा सैन्य पीछे पीछे सशस्त्र दल ईस प्रकार जूनागढ को चारों और से घेर कर प्रजा सैन्य जूनागढ पहुंची। उधर नबाब ने जब अपने आप को असहाय समझा तो अपने परिवार को लेकर हवाई जहाज द्वारा पाकिस्तान भाग गया, और जूनागढ नबाबी मिटकर भार तीय राज्य का एक भाग बन गया। कई गांव के मुसलमान भी गांव खालीकर पाकिस्तान चले गये तो वहां मुसलमान थे ऐसे कोई परि चय चिन्ह भी नहीं रहे । भयभीत हिन्दु लोग निर्भीक होकर रहने लगे । पूज्य श्री ने ईस प्रकार जूनागढ राज्य के कई गांवों में । “परिवर्तिनि संसारे मृतः को वान जायते” का प्रत्यक्ष चित्र देखकर अपने उपदेश में कई जगह फरमाया कि जैन सिद्धान्त संसार को परिवर्तन रूप मानता है। कहीं वह परिवर्तन धीरे धीरे होता है तो कहीं वह परिवर्तन एकदम हो जाता है। एकदम हुआ परिवर्तन दिखाई देता है । शनैः शनैः परिवर्तन दिखाई तो देता है परन्तु उस परिवर्तन को स्वीकारने के लिये मन्द बुद्धिवाले तैयार नहीं होतें। ज्ञानी जन इस परिवर्तन शील संसार से उदासीन रहते हैं तव अज्ञानी जनों को धीरे परिवर्तन दिखाई न देने से वे उस संसार में रचे पचे रहते हैं । जूनागढ प्राचीन समय में अर्थात् कृष्ण युग में उग्रसेन महाराजा को राजधानी थी । यहीं नेमीनाथ भगवान की बारात आई और वाडे में बन्द जीवों को छुआ कर बिना विवाह किये हि वापिस लौट गये । वर्षीदान देकर भगवान ने दीक्षा ली । दीक्षा के बाद भगवान जूनागढ के पास के गीरनार पर्वत पर ध्यानस्थ रहे केवल ज्ञान पाने के बाद भी सहश्राम्रवन में भगवान का पधारना होता रहा, और ईसी गीरनार पर्वत गवान सर्व कर्म को क्षय करके मोक्ष पधारे । इसी जूनागढ में रा खंगार राजा तथा राणक तिहास के एक प्रसिद्ध राजा राणी हुवें हैं जिन्होंने अन्तिम श्वास तक अपनो मर्यादा नहीं छोड़ी। जूनागढ का पूर्व काल से एक महान त्याग तप का व. वैराग्य का इतिहास है । यहां से वेरावल पधारने के लिये पूज्य श्री ने विहार किया वेरावल पधारते हुवे मार्ग में अनेक भव्य आत्माओंको उपदेश देते हुवे हाटी के मालिया विगेरे गांवों में विचरण करते हुए चोरवाड़ पधारे । चोरवाड सुरम्य बागों से सुशोभित अति सुरम्य स्थान है । पास ही समुद्र का सुन्दर दृश्य और बागों में नारियल, सुपारी, केले, आम आदि के सैकडों बगीचे हैं । पूज्य श्री के यहां पधारने पर वेरावल से श्रावक श्राविका दर्शनार्थ आए । वेरावल पधारने पर संघ ने भावपूर्ण स्वागत किया। वेरावल के पास प्रसिद्ध महा अर्बी समुद्र है । वैरावल के समिप वैष्णवों का इतिहास प्रसिद्ध तीर्थधाम सोमनाथ महादेव है। जिसका विनाश और विकास का अपूर्व इतिहास पढ़ते हुए पाठकों के रोमांच खडे हो जाते हैं। इसी वेरावल बंदर के पास ही कृष्ण युग में एक विशाल वनखण्ड था । जिसमें स्वयं श्री कृष्ण बलभद्रभाई के साथ आये । बलभद्र पानी लेने गए, और सोए हुए श्री कृष्ण के पेर में पद्म था, पद्म को हिरण अंग समझ कर यदुवंशी जराकुंवर ने तीर छोड़ा जिससे यहीं श्रीकृष्ण महाराज ने अपने पार्थिव शरीर को छोड़ा । बेरावल में भोई जाति के ५०० घर है। उस समय ईस जाति के संगठन की वहां के लोग प्रशंसा सुनाते थे। ईस जाति की अपनी न्याय पंचायत थी, जिसमें सामाजिक झगडे निपटाये जाते थे । पंचायत का फैसला सर्वोपरि मान कर उसे स्वीकार कर लेते थे । सरकारी कोर्ट कचहरी में जातीय झगडे कभी नहीं पहुंचते थे । कितना आदर्श सुन्दर समय था । पूज्य श्री के बिराजने से श्री संघ में धर्म जागृति बढ़ी। आयंबिल ओली, श्री महावीर जयन्ती और वर्षी तय के पारणे ये तीन धर्म कार्य पूज्य श्री के बिराजने से संघ में अपूर्व धर्मोत्साह में मनाए गये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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