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चन्द मनसुखलाल भाई के भतीजे ने ना० ठाकोर साहब को एवं शास्त्रोद्धार समति के अध्यक्ष सेठ श्रीशान्तिलाल मंगलदासभाई को अचित्त चन्दन काष्ठ पुष्प की माला पहना कर इन महानुभावों का हार्दिक स्वागत किया गया । शास्त्रोद्धार समिति--
मध्याह्न के पहले सेठ नरोत्तमदास ओघडदास भाई के बंगले पर भोजन करने के बाद सेठ श्रीअमूलख अमोचन्द भाई के बंगले पर सेठ श्री शान्तिलाल मंगलदास भाई के प्रमुखपने में शास्त्रोद्धार समिति की जनरल मिटिंग हुई। इस में शास्त्र प्रकाशन के कार्य को वेगवान बनाने का निर्णय किया। समिति खर्च को निभाने के लिए शास्त्रोद्धार समिति के अध्यक्ष शान्तिभाई ने प्रति वर्ष एक हजार रुपया पाच वर्ष तक समिति को देने का प्रवचन दिया उप प्रमुख श्री ने एक हजार रुपया दिया ।
तपश्चर्या के अवसर पर शास्त्रोद्धार के लिए २०००, संघ भोजन के लिए ७००० हजार एवं जीव दया के लिए ४००० हजार रुपये दान में प्राप्त हुए ।
इस समाज के आदर्श महान शास्त्र कार्य को पार करने में समाज को प्रेरित करना यह कर्णधारों का परम कर्तव्य है। समाज के बडे सज्जन प्रयत्न करे तो क्या नहीं हो सकता है । इस कार्य के मर्म को समझ कर लिमडी के एक अग्रगण्य सुश्राविका, जीन का जीवन त्याग मव्य है ऐसी मोतोब्हैन झवेर चन्द तल साणीया तथा वढवाण को नगर सेठाणी मोतीव्हेन नागरदास शाह तथा प्रभाब्हेन नरोत्तम दास शाह तथा वांका नेर की नगर सेठाणी जडावबहेन ने ईस महान कार्य के लिए जो जो परिश्रम किया है उसे समाज कभी नहीं भूल सकता । ईन व्हेनोने अपना अनमोल समय लेकर घर घर में फिरफिर कर समिति के शास्त्रो उद्धार का कार्य के लिए सहायता प्राप्त की, उनका इस समाज उपर महान उपकार है । समिति ने अपने ठहेराव में भी उनका आभार माना है। इन्ही की शुभ प्रेरणा से यह कार्य रूप प्रज्वलित बन सका है। एसा लक्ष अगर सर्व समाज के कर्णधार सोचलें तो क्या नहीं हो सकता परन्तु संप्रदाय वाद, देश भेद, राग द्वेष ही सर्व को नष्ठ कर देता है। यह कार्य कोई एक संप्रदाय का नहीं है। समाज के रक्षण का आदर्श कार्य है। क्या समाज अज्ञान के पडदे को तोडकर ज्ञान के प्रकाश में आवेगा ? ज्ञानविना सर्व मिथ्या है-ऋते ज्ञानान्मुक्तिः ज्ञान बिना मोक्ष हो नहीं सकता ।
तपोत्सव के दिन विशाल पण्डाल में पूज्य आचार्य श्री के एवं पं. रन्न मुनि श्री कन्हैयालालजी. म. आदि अन्य सन्तों के तथा स्थानीय वक्ताओं के प्रवचन हुए। पूज्य श्री ने तप की महिमा पर प्रभावशाली प्रवचन दिया। पं. श्री समीर मुनि जो का स्वास्थ्य ठीक न होने से वे प्रवचन मण्डप में नहीं आ सके फिर भी संघ को मार्गदर्शन देते रहते थे ।
जोरावरनगर संघ के लिए यह चातुर्मास बडा प्रेरणा दायी रहा । समस्त चातुर्मास में संघ का उत्साह अभूत पूर्व रहा । चातुर्मास समाप्त हुआ और पूज्य श्री को हजारों लोगों ने अश्रुभीने नयनों से विदा दी । पं. मुनि श्री समीरमलजी महागज का स्वास्थ ठोक न होने से चातुर्मास के बाद पूज्य श्री वढवाण केम्प में कुछ दीन विराजे । ईधर लिमडी से पूज्य गच्छाधिपति परम आचार्य श्री गुलाबचंदजी म० की प्रेरणा से लिमडी संघ वढवाण
आया और विनंती कि की पूज्य आचार्य म. का फरमान है कि सर्व पडितों को साथ में लेकर लिमडी शिघ्र पधारे और लिमडी में ही रहकर शास्त्रों का कार्य करो और आचारांग सूत्र की पूर्णाहूति लिमडी में हि होनी चाहिए । पूज्य श्री की आज्ञा का पालन कर आचार्य श्री ने लिमडी की विनंति मानली। वहां से आपने लीमडी की और बिहार किया । लीमडी में पूज्य श्री तीन मास बिराजे और शास्त्र लेखन का कार्य करते रहै । लोमडी में बिराजित पूज्य आचार्य श्री गुलाबचन्दजी म० सदानन्दी श्री छोटालालजी म. सा. पं. श्री शामजी स्वामी (वयोवृद्ध) 4. रत्न कविवर्य श्रीनानचन्दजी म० सरलस्वभावी पं. श्री रूपचन्दजी महाराज
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