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________________ ४०५ अपने जमाई के पार्थिव शरीर को अंत्यष्टि कृया के लिए ले गये तब और वापस घर आए घर कुछ रुदन की आवाज आई थी। उसके बाद श्री भाईचन्दभाई ने सभी को हिम्मत से कह दिया कि प्रथम पर्युषण पर्व की आरा धना और बाद में तपोत्सव की आराधना यह मुख्य कार्य है। तब तक घर पर रोना कुटना बन्द रहेगा। और इस कार्य के लिए कोई भी गांव के यहां बाहर के व्यक्ति बैठने के लिए न आवे । इसकी सूचना उन्होंने. सर्वत्र पत्र द्वारा सभी को भेज दो। स्वयं भाईचन्दभाई उसी समय व्याख्यान में आये । उनका सारा कुटुब भी नियमित व्याख्यान में आने लगे। रुढिवादी समाज के सामने भाईचन्दभाई ने एक दिव्य आदर्श उपस्थित किया। पर्युषण पर्व समाप्त होते ही तपोत्सव प्रारंभ हो गया। दोनों तपस्वियों ने ७३-७३ दिन की तपश्चर्या की थी जिसका पूर तारोख १९-९-४५ भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को था। चारों ओर तपोत्सव पत्रिका भेजी गई। वढवाण शहर के महाराजा सुरेन्द्रसिंहजी ने संघ की प्रार्थना पर राज्य की ओर से दर्शनार्थियों को समी प्रकार की व्यवस्था करने का वचन दिया तथा पानी की टंकी, एवं पाण्डाल के सभी साधन राज्य की ओर से दिये । सौराष्ट्र के इतिहास में यह एक महान् तपोत्सव था। संवत्सरी के पारणे से भाद्रपद शुक्ला १४ तक जोरावरनगर की महाजन वाडी व उपाश्रय में बहनों द्वारा नित्य सांगियां होने लगी। इस पूनीत प्रसंग पर उपस्थित होने के लिए संघ ने सर्वत्र आमंत्रण पत्र भेजे । फलस्वरूप इस पुनीत प्रसंग पर वढवाणकेम्प, चूडा सायला, ध्रांगघा, राणपुर, बोटाद, लखतर वीरमगाव, धंधुका, खंभात, लीबड़ी, बावळा, साणंद, भावनगर, राजकोट, अमदावाद, कल्लोल, वासवांडा, के संघ के अतिरिक्त उदययर एवं मेवाड के अनेक ग्राम निवासी मालवा, महाराष्ट्र आदि प्रान्तों के सज्जन उपस्थित हुए । करीब बीस हजार का विशाल जन समूह आया । पारने के अन्तिम चार दिनों में संघ भोजन में पन्द्रह से बीस हजार जन समूह ने लाभ लिया । जोरावरनगर शुद्ध हवा खाने का स्थल होने से श्री मन्तों ने यहां अपने २ बंगले बना रखे हैं। उन लोगों ने दर्शनार्थियों को उतरने के लिए अपने अपने बंगले खाली कर दिये । इनमें सेठ रतीलाल वर्धमानभाई मील वाले, सेठ रतीलाम अमुलखभाई सेठ अमलख अमीचन्दभाई सेठ शिवलाल गुलाबचन्दभाई स्टेट की पाठशालाएँ, सेठ कानजी अमूलख सेठ पून्जा भाई दीपचन्द, सेठ .रतीलालभाई झोबालावाले सेठ जयचन्द देवचन्दभाई आदि ने अपने अपने निवास स्थान देकर धर्म कार्य में पूरा सहयोग दिया। इस पुनित प्रसंग पर जोरावरनगर वढवाण केम्प का मूर्तिपूजक संघ सामूहिक रूप से आकर तपस्वियों के दर्शन कर संघ प्रेम का अपूर्व आदर्श उपस्थित किया । स्थानकवासी जैन संघ ने इनका भाव भीना स्वागत किया । ईस प्रसङ्ग पर उदयपुर के महाराणा श्री भूपालसिंहजी साहेब ने अपने ए. डी. सी, श्री चोवीसाजी को भेजे । तपश्चर्या के दिन मेवाड के महाराणा ने संपूर्ण मेवाड में अगता रखने का आदेश दिया। अतिरिक्त संजेली स्टेट, महेरपुरस्टेट, जुडास्टेट वढवाण राज्य, धाँगध्रा राज्य आदि के राजा महाराजाओं ने भी अपने अपने राज्य में पाखी (अगता) रखने का आदेश दिया । पढवाण नरेश का आगमन ता० १६-९-४५ रवीवार को १०॥ साडे दस बजे वढवाण नरेश श्री सुरेन्द्रसिंहजी महाराज सा. पूज्य श्री के दर्शनार्थ आये । दर्शन कर आप ने एक घंटे तक पूज्य श्री का प्रवचन सुना, प्रवचन सुनकर बडी प्रस न्नता प्रगट करते हुए कहा कि मेरे योग्य जो भी सेवा हो वह फरमाईए" पूज्य श्री ने कहा हमारी सेवा यानी मानव की सेवा है। आप हमारे अहिंसा धर्म के प्रचार में अधिक से अधिक सहयोग प्रदान करें। इस अवसर पर छ सात हजार मानव मेदनी उपस्थित थी। पूज्य श्री के प्रवचन के बाद डॉ, कस्तुरचन्द भाई मे संघ की ओर से श्रीमान् वदवाण नरेश का स्वागत किया । इस अवसर पर संघपति सेठ लखमी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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