SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८७ नं. ६०४१ - श्री एकलिंगजी ॥ श्रीरामजी ॥ उदयपुर ता. ९-२- ४३ डिप्टी कलेक्टरान व ठिकाने जात उमरावान को लिखा गया । ता०९-२-१९-४३ व सिलसिले हु० नं० ५६३९ मवरखा ३०-१-४३ । इतल्ला दी जाती है कि अगता बजाप्ते बडे बडे कसबों तमाम मवाजियात इजलाय सारे मेवाड में रखाया जावे । स. १९९९ महासुद ५ ॥श्री एकलिंगजी ।। श्रीरामजी नकल हुकुम आज पेशगाह राज्य श्री महकमें खास । फो० ऐण्ड० डी मवरखा माहविद ९, समत् १९९९ । ता० ३० -१-१९४३ ईस्वी नम्बर ५६३९ देश की शान्ति के लिए महासुद १० ता० ९ फरवरी सन ४३ रविवार के दिन उदयपुर में व मेवाड के बडे बडे कस्बों में अगता रखया जावे । और उसदिन तमाम गावों में लोगों को ॐ शान्ति का पाठ करने की भी हिदायत कराई जावे । फकत नंम्बर ९७४० ॥श्री एकलिंगजी ॥ ॥श्रीरामजी ।। फो० ए० पो० डी० सीधश्री राज्य श्री महकमाखास दरबार राज्य उदयपुर को हुक्म इलाके मेवाड का खालसा कामदारां, थानेदारां, भोमियां जागीरदार व सासणिक गामों का पटेल, पटवारी व गरडा, गमेती, वगैरह लोगों ने पहुंचे । अपरंच जैन आचार्य घासीलालजी महाराज और उनके शिष्य परिवार रियास्त हाजा के जिन जिन गावों में जावे और व्याख्यान धर्मचर्चा आदि करे उस सिल सिले में इमदाद चाहे और वो वाजीवतोर से दी जा सके वो दी जावे । सं० १९९९ का वैशाख व० १२ । ता० १ मई सन १९४३ । यहाँ राज्य की महोर छाप है। ॥श्री सीतावरजी ॥ ता. ११-३-४४ श्री श्री १००८ मुनि गोडीदासजी १००८ श्री पूज्य महाराजश्री घासीलालजी म. का उपदेश व ॐ शान्ति गढ देवलिये में हुआ। श्री महाराज का उपदेशसूं नीचे लिखी प्रतिज्ञा करता हूं । सो हमेशा निभाऊंगा १ मै. हरेक छोटी शिकार व हीरण मछली की शिकार नहीं करूंगा । मच्छियां तलाबों में से वगेर इजाजत दूसरा कोई शिकार नहीं कर सकेगा। (२) सारे राज्य में देवी देवता के नाम से पाडे व बकरे का बलिदान हमेशा के लिए बन्द रहेगा । (३) साल में आठ महिना, वैशाख, जेठ श्रावण, भादवो, कार्तिक, मिगसर, पोस फाल्गुन, में मारी तरफसु देवी देवता को कोई जीव को बलिदान नहीं होवेला । चेत व आसोज में भी कभी नहीं करूंगा । फक्त ता० ११ मार्च सन् १९४४ ई० दः रखबचन्द जैन तहसीलदार का किये श्री हजूर साहब का हुक्मसु लिख्यो । मिति चेत्रबदी २ । सं. २००० ॥श्रीरामजी ।। ता. ११-३-४४ ।। कोटा संप्रदाय के १००८ श्री गोडीदासजी महाराज श्री श्री १००८ श्री पूज्य महाराज साहब घासी. लालजी म. साहित्य प्रेमी व्या० मुनिश्री पंण्डित समीरमलजी म. आदि ठाना ५ देवलिया में पधारे । ता० ११ मार्च ४४ को शान्ति प्रार्थना में मेंभी पहुंचा और उस मोके पर मैने उपदेश श्रवण किया । उपदेश के अनुसार नीचे लिखे नियमों का पालन करूंगा । (२) सभी देवी देवताओं को मीठा प्रसाद चढ़ाया जायगा । और जीव हिंसा बन्द रहेगी । (२) इलाके कुरथल के तलावों में कोई बिना इजाजत शिकार नहीं कर सकेगा । जिसके लिए तलावों पर सेनबोर्ड लगा दिया जावेगा । (३) मेरे गांव में पजूषण के भादवा वदी ११ से सुदी ५ तक शिकार करने की मुमानियत रहेगी । घाणी भी नहीं चलाई जावेगी । और श्रावन भादवा, कार्तिक वैशाख में इन तिथियों में ११-५-३० को मैं खुद शीकार नहीं खेलूंगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy