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________________ सभा की सुव्ययस्था की । इनका एतद् विषयक परिश्रम बडा हि सराहनीय रहा । प्रथम वीर पुत्र समीरमुनिजीने “आओ बन्धु सभी मिल आओ, 'शान्ति भजन सुखदाय' यह भजन कहकर सभा का कार्य प्रारंभ किया बाद में पं. श्री कन्हैयालालजी म० ने आधे घन्टे तक मांगलिक प्रवचन दिया करीब एक घण्टे के भाषण के बाद रेजिडेण्ट साहब का भी आगमन हो गया । रेजीटेण्ड साहब के आने के बाद पूज्यश्री ने अपना भाषण प्रारंभ किया अरिहंता असरीरा आयरिय उवज्झाय मुणिणो । पढम अक्खर निउण्णो ओंकारो भविस्सई ।। अकारो वासुदेवः स्यात् उकारः शंकरस्तथा । मकारो ब्रह्मणी प्रोक्तः त्रिभिरोंकार उच्यते ॥ उपस्थित सज्जनों आज हम सामुहिक रूपसे ॐकार का स्मरण करने के लिए एकत्र हुए हैं। ॐकार यह अक्षर संक्षिप्त रूप से ईश्वर का हो स्मरण है । अरिहत प्रभु का अ, अशरीरी सिद्ध भगवान का अ आचार्य का आ, इसप्रकार अ, अ, और आ यह तीनों मिलकर अकःसवर्णे दीर्घः इस सूत्र से आ बन जाता है । उपाध्याय का उ, आ और उ के मिलने से 'आद्गुणः इस सूत्र से ओ हो जाता है । मुनि के मकार से ओम् शब्दकी उत्पत्ति होती है । यह रही जैनमान्यतानुसार ॐ शब्द की व्युत्पति । वैष्णव दृष्टि से ॐ इस प्रकार बनता है- असे वासुदेव. उ. से उमेश और म से ब्रह्मा इस प्रकार दोनों जैन और वैष्णव दृष्टि से ॐ शब्द के अंतर्गत ईश्वर शब्द हि ग्रहण होता है । एक हो शब्द से समग्र अपने अपने माने हुए सर्व ईश्वर कोही संबोधित करते हैं । प्रत्येक मनुष्य को ईश्वरपर श्रद्धा होनी चाहिये । जिसकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा नहीं है वह नास्तिक समझा गया है। नास्तिक संसार में कहीं सुखी नहीं हो सकता । वह अपना अस्तित्व संसार में मिटा देता है । सच्चा सुख और वास्तविक आनन्द पाना है तो हमें आस्तिक बनना पडेगा । भारत एकमहान धर्म प्रधान देश है। युगों से भारतवासी आस्तिक है । एक युग में राजा, महाराजा, धनिक, निर्धनी सर्व के सर्व आस्तिक थे। ईश्वर के नाम पर अपने आपको भी मिटा देने में वे जरा भी हिचकते नहीं थे । महाराजा हरिश्चन्द्र, कर्ण, विक्रम महाराणा प्रताप आदि महापुरुष का उदाहरण हमारे सामने हैं। उनके बलिदान की कथा आज भी इतिहास गारहा हैं। अपने धर्म के लिए महाराणा प्रतापसिंहने घास की रोटी खाई । भामाशाह, आशाशाह जैसे नर वीरों ने धर्म के नाम पर सर्वस्व अर्पण कर दिया । धाय पन्ना ने राजपूत्र उदयसिंह को बचाने के लिए अपने प्रिय पुत्र का बलिदान कर दिया । इन सर्व कर्मवीरों के मन में अपने ईश्वर और धर्म के प्रति असीम श्रद्धा और आस्था थी तब ही इन लोगोंने हँसते हंसते इतना बडा बलिदान कर दिखाया । आज संसार सर्वत्र अशान्ति की प्रचण्ड ज्वाला से झुलस रहा है । और वह इससे त्राण पाने के मार्ग खोज रहा है । लेकिन उसे अभी तक शान्ति पाने का सही मार्ग हि नहीं मिल सका। ऐसे अशान्ति के समय हम ऐसी शक्ति प्रगट करें कि जिससे चारों ओर शान्ति फैल जाय । भगवान श्री शान्तिनाथ में जो शक्ति थी और उन्होंने जो सर्वत्र शान्ति फैलाई उनकी कथा सर्व विश्रुत है। चइत्ता भरहं वासं चक्कवट्टि महड्ढिओ । संति सन्ति करे लोए पत्तो गई मणुत्तरं ॥ भगवान श्रीशान्तिनाथ लोक में सदा शान्ति करने वाले हैं । कोई मूढ अज्ञानी ऐसा भी कहते हुए सुनाई देता है कि-ईश्वर भजन से शान्ति मिलती है । भगवानश्री शान्तिनाथ के भजन से शान्ति मिलती है । ऐसा उल्लेख किसी भी शास्त्र में नहीं आता इत्यादि अनेक अज्ञानता की बात का वे महापुरुष के क्चन को एवं ईश्वर की शक्ति को छुपाते हैं । और अपनी मूर्खता का परिचय देते हैं । ईश्वर भजन से सर्वत्र शान्ति ही शान्ति होती है इस सिद्धान्त में कोई दो मत नहीं हो सकता । जब पूर्वकाल में ग्राम नगर देश वासियों को संकट का समय मालूम होता तो वे फौरन ईश्वर भजन में लग जाते थे। ईश्वर भजन दुःखी और सुखी राजा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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