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कार के साथ सेना भी चल रही थी । बडे बडे सामन्त सरदार भी अपने अपने बाहन पर बैठ कर साथ साथ में चल रहे थे । स्थान स्थान पर नाटक गायन हो रहे थे । इत्र गुलाब जल की पिचकारियां छोडी जा रही थी। इस समारोह के साथ हाथी आगे बढ रहा था । इस सुहावने अवसर को देखकर प्रत्येक व्यक्ति का मन प्रफुल्लित हो रहा था। इस प्रकार सेकडों व्यक्ति को निराश करता हुआ हाथी बाजार के वीच पहुंचा । वहाँ ऐक भिखारी भिखमांग रहा था । ऊंचे स्वर में एक लखपति साहुकार की पेढी के सामने खडा रहकर बोल रहा था भाई रोटी दे' मैं भूखा हूं परमात्मा तेरा भला करेगा एक गुना देगा, तो लाख गुणा पायगा। इस प्रकार आवाज दे रहा था । उस समय वहीं पर हाथी आया और अपनी सूड से पुष्पमाला उस भिखारी के गले में पहना दी। थोडे समय पहले रोटी का टुकडा मिलना भी बड़ा दुर्लभ । वह आज इस राज्य का सम्राट बन गया । विधी का विधान अजीब है । किस समय मनुष्य के भाग्य का पर्दा खुल
यह ज्ञानी के सिवाय ओर कौन जान सकता है । दर दर का भिखारी आज महाराजा बन गया ज्यों हि उसके गले में पुप्प की साला पडो लोग उसकी जय जय कार करने लग गये। उसके शरीर पर के चीथडे हटा कर उसे नया शाही पोशाक पहनाया गया और राज्य का ताज उसके सर पर रख दिया गया । जिसको बेठने के लिए टूटी खाट भी दुर्लभ थी वह आज रत्न जटित हाथी के होदे पर जा बेठा । गाजे बाजे के साथ उसे राजमहल में लाया गया और उसका राज्याभिषेक कर उसे अपना राजा बना दिया गया । धीरे धीरे वह राज्य नोति में निपुण हो गया और धैर्य उदारता आदि महान गुणों के कारण थोड़े समय में हो वह प्रजावत्सल बन गया । राज्य का संचालन अच्छे ढंग से करने लगा।
बादशाह जब कभी उठता तो हरवक्त बजीर के कन्धे पर हाथ दे कर उठता था । एक रोज बादशाह का जोर वजीर के कन्धे पर अधिक पडने से वजीर के मन में पूर्व की बात याद हो आई कि एक समय वह था जब रोटी का टुकडा मांगने से भी नहीं मिलता था । हड्डियाँ हड्डियां निकल रही थी । और एक आज का भी ममय है कि बिना सहारे उठ नहीं पाता । ऐसा विचार होते ही वजीर को सहज हंसी आगई । वजोर को असमय हसते देख बादशाह ने वजीर से पूछा वजीर तुम असमय क्यों हम रहे हो ? वजीर जहाँपनाह योंही सी आगई । बादशाह नहीं सच कह, हसी क्यों आई ? वजीर गुस्ताकी माफ हो । बादशाह बोले सर्व कसूर
। सच बात कहदे । वजीर को जिस बात पर हसी आई थी वह कह सुनाई । वजीर की बात सुनकर बादशाह बोला वजीर ? बस तेरे से इतना बजन भी सहन नहीं होसका, सचमुच तूं मेरे वजन देने के इरादे को नहीं समझसका । मैरा तेरे कन्धे पर भार देने का आशय यह था कि इतनी बडी सल्तनत का सारा बोज मेरे ही सरपर रख दिया गया है । इस बोझ को उठाने के लिए सहायक की जरूरत है और इस जरुरत को तूं ही पूरा कर रहा है । क्योंकि इस राज्य को जितनी जिम्मेदारी बादशाह पर है उससे कम वजीर पर नहीं हो सकती अतः वह भी राज्य का बोज अपने सर उठाता है । इस कारण मैं तुझे इशारे से समझाता रहता हूं कि तू यों न समझ ले कि मैं निश्चित हु। किन्तु राज्य का आधा बोज तेरे सर पर भी हैं । यों कहकर बादशाह ने अपने विचार वजीर को समझा दिये । जिस प्रकार बादशाह का आधा वजन उस वजीर पर था उसी प्रकार हमारा आघा वजन राज्य धर्म की सेवा बजाने के लिये आप सामन्त वर्ग पर भी है । राज्य के संचालन में व प्रजा को न्यायमार्ग पर दृढ रखने के लिए सामन्तमर्ग का सबसे बडा हिस्सा होता है । आपने हमको इस त्याग के सिंहासन पर बैठाया हैं । आप हमें धर्म के संयम के बाद शाह स्वरूप समझते हो । ____ हमारे धर्म कार्य में आप सरदारों की सहायता की हमेशा जरूरत रहती है सो हर समय संतसेवा किया करे। त्यागियों के यहाँ जाने से आपको समय समय पर लाभ की प्राप्ति होती रहेगी। इस प्रकार पूज्य
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