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________________ ३६५ यहाँ पर पधारने के बाद पूज्यश्री का नित्य प्रातः काल व्याख्यान श्रवण करने के लिए उदयपुर की बढी संख्या में जनता उपस्थित होती थी । ता० १५-१-४२ को चम्पोबाग में उपदेश सुनने के लिये श्री महाराणा साहब ने पूज्यश्री को आमंत्रण दिया तदनुसार पूज्यश्री अपनी शिष्यमण्डली के स पधारें । स्थानकवासी जैन समाज के मुखिया तथा श्री महावीर मंडल के सभी कार्य करतागण भी पूज्यश्री के साथ थे । यहाँ पधारने पर महाराणा साहब ने पूज्यश्री से लम्बे समय तव विविध विषयक चर्चा की पज्यश्री के उत्तरों से महाराणा साहब बडे प्रसन्न दिखाई देते थे । करीब दो घन्टे तक महाराणा साहव से वार्तालाप एवं प्रवचन कर पूज्यश्री स्वस्थान पधार गये । राजमहल मे पूज्यश्री का पदाण श्री कोठारजी साहब एवं चोविसाजी द्वारा पूज्यश्री को ता०३०-१-४२ को महाराणा साहव ने महलों में पधारने का आमन्त्रण दिया । तदनुसार पूज्यश्री अपनी शिष्यमण्डली व राजकर्मचारी गण तथा श्रावकगण एवं उदयपुर के गण्य मान्य भक्तजनो के साथ ता०३०-१-४२ के दिन दपहर में महेलों में पधारे। महाराणा साहव पूज्यश्री के पधारते ही महाराणा साहब ने एवं समान्तवर्ग ने यथायोग्य सम्मान किया । पज्यश्री अपनी जगह पर बिराज गये । तत्पश्चात् महाराणा साहव से प्रारंभिक वार्तालाप के बाट पूज्यश्री ने अपना मांगलिक प्रवचन प्रारंभ कर दिया । आपने अपने प्रवचन में कहा इस संसार में मनुष्यों को सन्तभक्ति से अनेक फायदे होते हैं । जो मनुष्य सन्त पुरुषों के समागम में नहीं आता वह अपना श्रय कदापि नहीं कर सकता। जिसको अपनी भलाई का सदा ध्यान रहता है वह कदापि संत समागम से विमुख हो नहीं सकता । सन्तसमागम में ही मनुष्यमात्रका हित समाया हआ है । प्रथम महाराजा जनक के समय तथा राजा हरिश्चन्द्र व विक्रम के समय मुनियों की बड़ी सेवा भक्ति की जाती थी । उस समय में प्रत्येक राजा महाराजा वासुदेव चक्रवर्ती धनी निर्धन धर्मी व पापी संत सेवा से खूब ही फायदा उठाते थे । आज के समय में वह हालत नहीं होने से धर्म कर्म से मनुध्य भ्रष्ट हो रहा है । आप सर्वसज्जनों को चाहिये कि आप श्री महाराणां साहब के हित चिन्तक हैं तो संत सेवा अवश्य किया करें जो उसमें आपको भी कुछ अवश्य मिलेगा तो अच्छा ही मिलेगा । हमारा आप पर जोर है ।हम आप पर जितना भी वजन देना चाहे दे सकते हैं। कारण कि वजन समर्थ व्यक्ति ही उठा सकता है कमजोर नहीं । आपने इस पर एक दृष्टान्त फरमाया-एक समय दिल्ली के बादशाह का अकस्मात देहा. वसान हो गया। बादशाह के शाहजादा न होने से भाईयों में राज्य प्राप्ति के लिये लढाईयां होने लगो । तब वजीर ने विचार किया कि राज्य भोंक्ता तो एक ही मनुष्य होगा और ये आपस में व्यर्थ ही झगडा कर अपनी शक्ति बरबाद करदेंगे । ऐसा विचार कर उसने उन सभी भाईयों को बुलाकर अर्ज की कि आप लडना झगडना बन्द करें कारण आपसी लडाई और फूट के कारण यह सारा राज्य ही नष्ट हो जायगा। अगर आप अपने राज्य की सुरक्षा चाहते होतो मै आपको एक एसा उपाय बताता हूं जिससे राज्य भी सरक्षित रहे और राज्याधिकार भी प्राप्त हो जाय । अपने यहाँ पुरातन काल से रिवाज है कि को श्रृंगारित कर उसकी सूड में फूल की माला रखकर शहर में छोड दिया जाय और वह जिसे माला पहनावे उसी को अपना बादशाह मान लिया जाय । वजीर की इस नेक सलाह को सभो सज्जनों ने स्वीकार की। बजीर के कथनानुसार हाथी को स्नान करवाकर आभूषणों से सज्जित कर उसकी सूड में फूल की माला पकडा दी गई। अब शहर में बड़ी भारी तैयारियाँ हुई । राज्य प्राप्ति के प्रलोभन से लोग झुन्ड के झुन्ड श्रृंगारित हाथी के पीछे पीछे धूमने लगे । जिधर हाथी जाता है लोग उसके सामने जाकर माला प्राप्ति के लिए खड़े हो जाते थे । हाथी के पीछे पीछे बाजों की झन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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